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________________ ( ८७ } हुए हैं, जिन्होंने विघ्नविनाशक गणेशजी की लोक- प्रसिद्धि के कारण अपनी रचनाओं के मंगलाचरण में श्री गणेशजी को नमस्कार और उनका स्मरण किया है । ऐसे कुछ कवियों के मंगलाचरण के श्री गणेश सम्वन्धी पद्य नीचे सद्धृत किये जा रहे हैं जिससे श्वेताम्वर कवियों की उदार भावना और समन्वयवृत्ति का परिचय मिल जाता है । १ - सं० १५६५ में उदयभानुरचित 'विक्रमसेन रास' के प्रारम्भ में...... शंभु शक्ति मनिधरी, करिस कवि नव नवइ छंहि । सिद्धि बुद्धिवर विधनहर, गुण निधान गणपति प्रसादि ॥ २ - सं० १५७५ में मृतकलशरचित 'हमारे प्रवन्ध' के प्रारम्भ #... गवरीपुत्र गजवदन विशाल, सिद्धि बुद्धिवर वचन रसाल । सुर-नर- किंनर सारइ सेव, घुरि प्रणम् लम्बोदर देव ॥ ३ - सं० १६६५ कवि हेमरत्नरचित 'गोरा वादल चोपाई' के प्रारम्भ में... सकल सुखदायक सदा सिद्धि बुद्धि सहित गणेश । विघन विडारणरिध करण, पहिली तुझ प्रण मेश ॥ ४- सं १७७२ मेंदन पति विजयरचित 'सुन्माण रासो' के प्रथम में...... शिव सुत सुं ढालो सजल, सेवे सकल सुरेश । विन विडारण वरदीयण, गवरी - पुत्र गणेश ॥ ५- सं० १७७६ में केशर कविरचित 'चंदनमलियागिरी' चो०, के
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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