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________________ होना चाहिए।' इसी संदर्भ में यह उल्लेखनीय है कि जनवरी १९६६ में विश्व हिन्दू परिपद का सम्मेलन प्रयाग में गंगा-यमुना के संगम पर हुया था, जिसमें व्यापक स्तर पर हिन्दुओं ने अभूतपूर्व इंग से अपना योगदान दिया। इस तरह का सम्मेलन निकटभूत या माधुनिक काल में देखने को नहीं मिलता। इस सम्मेलन में 'हिन्दू' शब्द वैदिक, वौद्ध, जैन, सिक्ख, लिंगायत आदि सव पन्थों का समावेश करने वाले 'समाज' के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। लगभग २००० वर्ष पूर्व बौद्धों के ऐसे सम्मेलन (संगीतिका) हुना करते थे। हिन्दुओं की विद्वत सभायें इसके पहले भी होती थीं, अव भी होती हैं, परन्तु समस्त हिन्दुओं का इस ढंग का यह पहला ही सम्मेलन हुआ और इसलिए इसका असाधारण महत्व भी है। विश्व में ज्ञान परम्परा की रक्षा, प्रचार तथा उसके आदर्श स्थापना के लिए वैष्णव धर्म दशज्ञानावतार माने गए हैं, जिनमें छटवें स्थान पर 'ऋपभदेव' को माना है (जिन्हें जैन धर्म में प्रथम तीर्थकर आहिनाथ स्वामी माना गया है)। ___इनके १०० पुत्र थे, जिनमें ज्येष्ठ पुत्र (क्षत्रिय) भारत का. अधिपति हुआ । उससे कनिष्ः ८१ पुत्र महाश्रोलीय (ब्राह्मण) १-राष्ट्र धर्म मासिक : डा० मंगलदेव शास्त्री, डी०पी० आक्सन पृ० ७२ २-हिन्दू समाज संघटन और विघटन-लेखक डा० पुषोत्तम गणेश सहस्त्रबुद्ध पृ०-१ ३-हिन्दू धर्म का क ख : तनसुखराय गुप्त-पृ० २५
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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