SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अहिन्दू सिद्ध करने का प्रचार किया था, किन्तु उनको सफलता नहीं मिली और नागपुर तथा जबलपुर में जव हिन्दू मुस्लिम दंगे होने लगे, तव उन्होंने अपने धन-जन की रक्षा के लिए स्वयं को हिन्दू होने की घोषणा कर दी। इसी प्रकार कुछ ब्राह्मणों ने भी जैनियों को नास्तिक कहकर अपनी विवेकहीनता का परिचय दिया था । वस्तुतः जैन धर्म हमारे वैदिक धर्म की एक शाखा है । जैनियों के आदि तीर्थकर भगवान ऋषभदेव जी (आदिनाथ) वैदिक सनातनियों के अवतार माने गये हैं। तब जैन धर्म और वैदिक धर्म मूलतः दो कैसे हो सकते हैं। वेद के मूल मन्त्र ॐ का जैन धर्म में वही आदर और सम्मान है जो एक ब्राह्मण के हृदय में । जैन मतावलम्बी भी शिखां और सूत्र धारण करते हैं तथा पुर्नजन्म और धर्म के दस लक्षणों को मानते हुए आर्य संस्कृति का स्वयं को. एक अभिन्न अंग स्वीकार करते हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि जैन धर्म हिन्दू धर्म की एक स्वतंत्र चिन्तन धारा है, जो इस देस के लाखों लोगों के लिए श्रद्धा का स्तंभ बनी हुई है।' स्यीय पं जवाहरलाल नेहरू ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि जैन धर्म हिन्दू धर्म की एक शाखा है तथा जैन भर्म का एक बुनियादी सिद्धांत है कि सत्य हमारे विचारों से सापेक्ष है । यह एक कटोर नीतिवादी और अपरोक्षवादी विचार पद्धति है तथा इस धर्म में जीवन और विचार में तपस्या के १-राष्ट्र धर्म-लखनऊ-तीर्थकर-महावीर विशेषांक-श्री कृष्ण वल्लभ द्विवेदी-पृ० १
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy