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________________ वर्णन रूप 'जुहार' शब्द का भाव है । 'जुहार' शब्द का व्यवहार ।। जैन वधु परस्पर अभिवादन में करते हैं। तुलसीदास जी की ।। रामायण में 'जुहार' शब्द का अनेक बार उपयोग किया गया है । , अयोध्याकाण्ड में लिखा है कि चित्रकूट की ओर जब रामचन्द्र जी गये, तब योग्य निवास भूमि को तजते समय पुरवासियों ने रघुनाथ जी से जुहार की है। 'लै रघुनाथहिं ठाउ देखावा, कहेउ राम सव भांति सुहावा । पुरजन करि जुहार घर पाये, रघुवर संध्या करन सिधाये।' भीलों ने भी रामचन्द्र जी से जुहार की है और अपनी भेंट अर्पित की है। करहिं जुहार भेंट धरि आगे, प्रभुहिं विलोकहिं अति अनुरागे। प्रभुहिं जोहारि बहौरि-वहौरि, वचन विनीत कहहीं कर जोरी ॥ अयोध्यावासियों ने राम-वनवास के पश्चात् भरत जी के अयोध्या आगमन पर भी इस शब्द का प्रयोग किया है। पुरजन मिलहिं न कहहिं कछु गंवहिं जोहारहिं जाहिं । भरत कुशल पूछि न सकहिं, भय विपाद मन माहिं ।। . पुरवासियों के द्वारा इस शब्द का प्रयोग जैन व वैदिक धर्मावलम्बियों के समन्वय का सूचक है। विस्तृत और विशाल हिन्दू धर्म में अनेक सम्प्रदाय और मत हैं । शैव, शाक्त, वैष्णव, गाणपत्य, लिंगायत, बौद्ध, जैन, कवीरपन्थी और सिक्ख आदि खरवूज की कलियों की भांति बाहर से भिन्न-भिन्न दिखाई देते हुए भी भीतर से एक हैं।' कुछ दिन हुए मध्यप्रान्त के अत्यल्प संख्यक जैनियों ने धारा सभाओं में प्रवेश करने के क्षुद्र स्वार्थ को लेकर अपने को १-विजयययपता का स्वामी श्रीरामचन्द्र वीरमहाराज-पृ० १८१
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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