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________________ कि स्वर्गीय श्री शास्त्री जी की स्मृति में एक महाविद्यालय की स्थापना की जाये। इस समय तक शासन की जिले एवं नगर वन्दी की अनाज बन्दी की आक्रामक की नीतियों के कारण विवशत. अपना समस्त अनाज व्यापार एवं दाल मील को भी मेहता बन्द कर चुके थे और इसी कारण माननीय श्री तखतमल जी और श्री रतनचन्द जी प्रोसवाल तथा उ.- के अन्तरंग साथियों द्वारा जब महाविद्यालय के प्रारम्भ की चर्चा पाई तो व्यापार से सुरक्षित बचे २५ हजार रुपये सहर्ष इस सदुपयोग के लिये श्री मेहता ने स्थायी सुरक्षानिधि के रूप में प्रदान किये, जिसे विश्वविद्यालय में जमा किया गया और परिणामस्वरूप वासौदा शिक्षा समिति के तत्वा- . वधान में श्री लाल बहादुर शास्त्री महाविद्यालय का विधिवत् शुभारम्भ जुलाई १९६६ से हो सका। इसी सत्र से नन्हे-मुन्हे बच्चों की प्रायोगिक शिक्षा की व्यवस्था भी शुरू की गयी और इसके निमित्त शिशु मन्दिर की स्थापना हुई, जो तब से निरन्तर प्रगति के पथ पर है। श्राज शिशु मन्दिर का एक विशाल भवन श्री मेहता के ही अथक प्रयासों का ही परिणाम है । जहां बहुत से नन्हे-मुन्हे वालक नई शिक्षा प्रणाली के अनुसार पढ़ाए जाते सभी धर्मों के प्रति उदार हृदय श्री मेहता साम्प्रदायिकता से दूर-दूर तक अप्रभावित हैं । बासौदा में मुसलमानों का एक ऐसा मकबरा जिसे श्री मेहता ने बासौदा का ताजमहल कहा, काफी दिनों से तटस्थ पड़ा हुआ था। उसके विकास के लिए भी
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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