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________________ १९६० को किये गये अखिल भारतीय मानस ज्ञान यज्ञ महोत्सव के आयोजन के श्री मेहता अध्यक्ष रहे। इस यज्ञ में अनन्द श्री विभूपित जगत्गुरू शंकराचार्य जी, श्री कृष्ण बोधाश्रम जी महाराज तथा श्री कुशल जी आदि प्रकाण्ड विद्वानों की ज्ञानगंगा का रसास्वादन इन्होंने असंख्य नर-नारियों को कराया। दूसरा प्रमुख कर्मक्षेत्र था शिक्षा...। बासौदा जैसे शहर में लम्बे समय से अनुभव की जा रही उच्च शिक्षा की कमी से प्रभावित होकर श्री मेहता ने जनता के सहयोग से एक महाविद्यालय की स्थापना की और उसका नाम रखा गया "श्री तारण तरण दिगम्बर जैन महा विद्यालय।" १९६४ में स्थापित इस महाविद्यालय को कुछ समय पश्चात जब शासन द्वारा अपने नियंत्रण में लेने का प्रश्न आया तो अन्य कुछ लोगों की राय के विपरीत श्री मेहता ने इस बात पर बल दिया कि यदि महा विद्यालय को हम सबसे अधिक व्यवस्थित और नियमित रूप से शासन चला सकती है तो हमें शासन को इसे सौंप देना चाहिए क्योंकि हमारा मूल लक्ष्य इस क्षेत्र में उच्च शिक्षा को सुचारु रूप से संचालित करने का है, इसमें किसी के निजी श्रेय का कोई विशिष्ट अर्थ नहीं। और इस प्रकार यह संस्था विधिवत शासन को सौंप दी गई। सन् १९६६ में विधि अध्ययन को लेकर नापने एक नये महाविद्यालय की पुनः नींव रखी और उसका वड़ाही भावात्मक कारण रहा। तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व० लाल बहादुर शास्त्री की अकस्मात मृत्यु का दुखद समाचार जब यहां प्राप्त हुया तो उनके कनिष्ट पुत्र भी कवि सम्मेलन के सन्दर्भ में बासौदा में उपस्थित थे और इसी सन्दर्भ में बाद में यह निर्णय लिया गया
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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