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________________ ( २१ ) है वह अंश जो प्रमुख पत्र 'कर्तव्य दान' ने इनके बारे में लिखा -- 'मेहता जी पुराने कार्यकर्ता हैं, श्राप सन् १९३२ से कार्य कर रहे हैं । आपकी लगातार भाषण शैली अत्यन्त प्रभावशाली और सबसे बड़ी विशेषता श्राप में यह है कि इन्होंने स्वतः के बौद्धिक परिश्रम से पूजी एकत्र की है ।' इतके अनन्य साथियों में से इनके समय नगर पालिका अध्यक्ष श्री प्रसाद पाठक भी थे जिन्होंने इनकी क्षमता पर पूरा विश्वास सदैव व्यक्त किया । ग्रक्टूबर १९५८ में ग्रेन मर्चेन्ट एसोसिएशन, वीना के अध्यक्ष बनाये गये तथा इस जिम्मेदारी को भी बड़े ही सूझ बूझ से इन्होंने अन्त तक निभाया । शिक्षा और धर्म के प्रति भी इन्होंने जब-जब समय मिला अपना प्रयत्न जारी रखा और इसी क्रम में कई सनातन मन्दिरों का भी जीर्णोद्धार इन्होंने कराया जिसमें इटावा के हनुमान मन्दिर तथा मारुति मन्दिर आदि कहे जा सकते हैं । तारण तरण ममाज के प्रायोजनों में प्रारम्भ से ही इनका विशेष सेवा कार्य आज भी लोग याद करते हैं तथा इन मौकों पर इन्होंने बहुत सी सम्बन्धित रचनाओं का भी समय समय पर निर्माण किया । एक कांग्रेसी कार्यकर्ता के रूप में कई वर्षों तक अपनी निष्ठा प्रमाणित करने के फलस्वरूप इन्हें मण्डल कांग्रेस को सुदृढ़ और संगठित करने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई तथा १९५८ में इन्हें मण्डल कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया । लगभग डेढ़ वर्षों तक वीना क्षेत्र में अपनी सेवायें अर्पित करने के पश्चात् यह स्थान इन्हें छोड़ना पड़ा क्योंकि पूरा सागर क्षेत्र ही
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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