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________________ १७ ) आव्हान की अपनी भूमिका को इन्होंने भी क्रान्ति के प्रति समपित माना और नवयुवक सेवा मण्डल के माध्यम से कांग्रेस की क्रान्तिकारी नीतियों में गहरी आस्था होने का प्रमाण जीवन के आने वाले तमाम वर्षों में प्रस्तुत करते रहे। गांव के चिन्ताजनूय पिछड़ेपन से प्रायः चिन्तित श्री मेहता ने वहां के जन-जीवन के विकास के लिये दो अन्य संगठनों का . निर्माण किया 'जीव दया प्रचारिणी सभा' जिसके अन्तर्गत दूसरों के हितसम्वन्धी रचनात्मक कार्यक्रम अपनाये गये तथा 'व्यापारिक शिक्षा संस्थान' जिसके अन्तर्गत वहां के युवकों के भावी जीवन में व्यापारिक स्तर पर विकास की दिशा में सफल बनने के लक्ष्य से इन्होंने व्यापार के अनिवार्य लक्षणों तथा उसमें प्रगति की अपनी अभूतपूर्व व्याख्या प्रस्तुत की, जिसके साक्ष्य स्वरूप इनके इन्हीं सिद्धान्तों द्वारा निर्देशित कई युवक, जिन्होंने उस समय व्यापार की दिशा ग्रहण की थी, आज निःसन्देह एक सफल व्यापारी बन सके। . अांदोलन के देशव्यापी अनुक्रम में स्वयं समर्पित श्री मेहता ने पूरी तरह गांधीवादी विचारधारा को अपने जीवन में ग्राह्य माना और बीस वर्ष की आयु से आज तक वे उसी श्रद्धा के सहज क्रम में शुद्ध खादी का प्रयोग करते चले आ रहे हैं। स्वतन्त्रता संग्राम इनके लिये भी एक चुनौती था और उसमें सक्रिय भाग लेने का उत्साह वे रोक न सके ; तथा कांग्रेस विचारधारा के समर्थन-पालन में कई बार विभिन्न कठिनाइयों और यातनाओं को सहने के बाद भी अपनी प्रोजस्वली लेखनी से जन जीवन में व्यापक क्रान्ति चेतना भरने की अपनी अथक चेष्टा जारी रखी। काव्यप्रतिमा प्रायोगिक को इन्होंने शोपण और
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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