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________________ ( ११४ ) इत्थं प्रभव ऋषभवतारोहि शिवस्य मे। सतां गतिदीन बन्धुनं वामः कथितस्तवः ।। शिवपुराण ४१४८ अजितनाथ और अरिष्ठ नेमी नाम के तीर्थंकरों का निर्देश यजुर्वेद में मिलता है। ऋग्वेद में 'अरिष्ठनेमि' शब्द चार वार प्रयुक्त हुआ। 'स्वास्ति नस्ताक्ष्यों अरिष्ठनेमिः' यहां पर अरिष्ठनेमि शब्द भगवान अनिरण्ठनेमि के लिए आया है। अथर्ववेद के व्रात्य-काण्ड में रूपक की भापा में भगवान ऋपम का ही जीवन उदंकित किया गया है भगवान ऋषभ के प्रति वैदिक ऋपि प्रारम्भ से ही निष्ठावान रहे हैं और उन्हें वे देवाधिदेव के रूप में मानते रहे हैं । ___'भगवान् परमपिभिः प्रसादितो नाम: प्रियचिकीर्पयातदवरोवायने मरुदेव्यां धर्मान दर्शयितु कामावतार शनानां श्रमणानाम् ऋपीणाम् उर्ध्वन्यिनां शुक्लया तन्वावतार ।' भगवत पुराण ५।३।२०-१ यजुर्वेद में ऋषभदेव, अजितनाथ और अरिष्ठनेमि इन तीनों तीर्थन्करों के नाम आते हैं । भागवत पुराण भी इस बात का समर्थन करता है कि ऋपभदेव जैन धर्म के संस्थापक थे। वैदिक हरिवंश पराण में भी महर्षि वेदव्यास ने श्री कृष्ण को अरिष्ठनेमि का चचेरा भाई माना है। वर्तमान महावीर जन धर्म के मूल प्रवर्तक वैशाली के राजकुमार वर्षमान थे । वहाँ लिच्छिवि वंश के एक क्षत्रिय राजा राज्य करते थे । वर्षमान का जन्म ईसा से लगभग ५४० वर्ष पूर्व हुया था। ३० वर्ष की अवस्था में उन्होंने अपना घर बार बोड़ कर १२ वर्ष तक घोर तपस्या की। १३वें वर्ष में उन्हें 1-देवेन्द्र युनि शास्त्री, साहित्य और संस्कृति-पृ० २०६ २-राधाकृष्णन-भारतीय दर्शन का इतिहास सजिल्द १४४-२८७ -देवेन्द्र मुनि शास्त्री : ऋषभदेवः एक परिशीलन-पृष्ठ ६ - -
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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