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________________ कुरुवंश में हुग्रा । मुनिसुव्रतनाथ का जन्म हरिवंश में हुआ । और शेप का जन्म इक्ष्वाकुवंश में हुआ । भगवान ऋषभदेव की तरह तपश्चरण किया और केवल ज्ञान को प्राप्त करके जन-जन को धर्मोपदेश करते हुए अन्त में निर्वाण को प्राप्त किया इन . में से भगवान वासु पूज्य का निर्वाण चम्पापुर से हुया और शेस तीर्थन्करों का निर्वाण सम्मेद शिखर से हुया। ___इसी सन्दर्भ में इन तीर्थन्करों से सम्बन्धित प्रतीकों का भी उल्लेख अप्रासंगिक न होगा। भारतीय कला में वैसे भी प्रतीकों का बड़ा महत्व है। कई बातें प्रतीकों द्वारा प्रशित की जाती हैं । जन धर्म के सभी तीर्थन्करों की कल्पित प्राकृति एवं बैठने की स्थिति एक सी है, इन्हें प्रतीकों द्वारा पहिचाना जाता है । जैसे(१) वृपभदेव-'वृषभ' (२) अजितनाथ-'हाथी' (३) संभवनाथ-'घोड़ा' (४) अभिनन्दनस्वामी-'बन्दर' (५) सुमतिनाथ-'चकवा' (६) पद्मप्रभु-'कमल' (७) जिनसुपास-'साथिया' (८) चन्द्रप्रभु-'चन्द्र' (६) पुष्पदन्त-'मगर' (१०) शीतलनाथ-'कल्पवृक्ष' (११) श्रयासपद-'गेंडा' (१२) वासुपूज्य-'भैसा' (१३) विमलनाथ-'शूकर' (१४) अनन्तनाथ-'सेही' (१५) धर्मनाथ-'वन' (१६) शान्तिनाथ-'हिरन' (१७) कन्युनाथ-'हिरन' (१८) अमरनाथ-'मीन' (१६) मल्लिनाथ-कलश' (२०) सजत-'कछुया' (२१) नमि-'लालकमल' (२२) नेमिनाथ-'शंख (२३) पार्श्वनाथ-'सर्प' (२४) महावीर-'सिंह' ऊपर उल्लिखित प्रतीकों में जितने भी नाम पाये हैं, उन सवकी अधिकांशतः किन्हीं अर्थो में हिन्दू संस्कृति में एक विशिष्ट महत्व है। अतः समन्यात्मक प्रतीकों की ये विशेषता यहां भी स्पष्ट करती है कि मूलतः जैन और वैदिक परम्परा में बहुत अधिक साम्य है।
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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