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________________ दार्शनिकों ने सत्यता की कसौटी संगति मानी है। पाश्चात्य दर्शन में भी आदर्शवादी दार्शनिक जिनमें हेगेल, ग्रीन, बोसाक और बडने प्रमुख हैं, ने संगति को सत्यता की कसोटी माना है। इनके अनुसार हमारे मान की सत्यता पोकान के साय संगति में निहित है। यदि हमारा वर्तमान तान पूर्वज्ञान के विपरीत है तो हो सकता है कि हमारा वर्तमान शान गलत हो । यद्यपि कभी -कभी ऐसा भी होता है कि नवीन खोजौं एवं अनुसंधानों - प्रारा हमारा पूर्वज्ञान गलत सिद्ध कर दिया जाता है और नवीन शान को सत्य । किन्तु हाँ पर स्पार है कि नवीन ज्ञान और पूर्णान में मंगति शापित कर दी गयी और दोनों में विरोध समाप्त कर दिया गया। का तात्पर्य है कि किसी भी वान सत्य नहीं माना जा सकता | बान में संगति, ज्ञान की सत्यता के विश्वास के लिए आवश्यक है। इस सिद्वाना में भी कई कठिनाया है। सर्कशास्त्र में शEिRT II Non- contradichom : विश्लेषणामक पराम की सत्यता की कसौटी है। विलेामक परामशों का अर्थ है - ऐसे परामर्श जो कोई नवीन ज्ञान तो नहीं देते हैं परन्तु इन परामशों में विधेय उदेश्य का पाटीकरण मात्र भारते हैं। 'पिालेडाणा (मक परामर्धा को उदाहरण से स्पष्ट कर सकते है जैसे निभुज के तीनों कोगों का योग दो समकोणों के योग के बराबर होता है. इस मिने-TeT परामा में उदेश्य त्रिभुज के तीनों मोगा योग से ही यह बात हो जाती है कि विध दो समकोण के योग के बराबर होगा। किन्तु विधारा उददेश्य के য, কং ক মিল সী” । স্কুল জ্ঞান ক্লা শিক্ষক মা ঙ্ক सीमित नहीं किया जा सकता । ज्ञान मैं विधेय को उद्वेषय में शुभ नई बातें जोड़नी चाहिये। जिस परामर्श में विधेय उददेश्य मैं कुछ नई बातें जोड़ता है उस महामर्श को संज्ञलेलामा परामर्श करते है। अतः स्पष्ट है कि यदि सत्यता की कसोटी अबाध का नियम मान लिया
SR No.010238
Book TitleJain Gyan Mimansa aur Samakalin Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlpana Agrawal
PublisherIlahabad University
Publication Year1987
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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