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________________ १८ ता प्रसाद सुख पायौ भारी, कि बोल मोरे भाई ॥ ६ ॥ धर्म तनें फल अगम अपारी, कि बोल मोरे भाई ॥ गिरवरदास हिये विचधारी कि बोल मोरे भाई ॥ ७ ॥ ( १६ ) ( "छोड मोरे भाई" की चाल - व्याह में ) सात व्यसन की लगी अथाई, कि छोड़ मोरे भाई ॥ तिन की कथा सुनहु चितलाई, कि बोल मोरे भाई ॥ टेक ॥ जुआ खेल पांडव दुख पाई, कि छोड़ मोरे भाई ॥ पल भखि के बक नरकै जाई, कि छोड़ मोरे भाई ॥ १ ॥ मदिरा पी यदुवंश नशाई, कि छोड़ मोरे भाई ॥ चारुदत्त वेश्या भटकाई, कि छोड़ मोरे भाई ॥ २ ॥ खेट ब्रह्मदत्त नृप पछताई, कि छोड़ मोरे भाई || दशमुखने परनारि चुराई, कि छोड़ मोरे भाई ॥ ३ ॥ कीचकने व्यभिचार कराई, कि छोड़ मेरे भाई ॥ इक २ सेवत बहु दुख पाई, कि छोड़ मेरे भाई ॥ ४ ॥ सातों सेवत का फल पाई, कि छोड़ मेरे भाई || गिरवर दास चंदेरी में गाई, कि छोड़ मेरे भाई ॥ ५ ॥ ( १७ ) ( " छोड मेरे भाई ” की चाल - व्याहमें ) सुमति कुमति कि लगी लडाई कि छोड़ मेरे भाई ॥ टेक ॥ मांस खाय नर नरकै जाई कि छोड़ मेरे भाई ॥
SR No.010236
Book TitleJain Gitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Sodhiya Gadakota
PublisherMulchand Sodhiya Gadakota
Publication Year1901
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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