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________________ थोड़ी बरनी बहुतक ग्रंथ बढावे बे॥ मापाचार, कुशीत झूट युत ऐसी गति को जावे में ॥५॥विकया पाप ग्य. सन मिथ्याग सों निगोद घर थावे ॥ तात वार २ समझाऊं मति कुदेव को ध्यावे ॥६॥ यो तन पाय धरम कलु करले नाहक जन्म गमावे॥ जाग मके नो जागले चेतन फिर पीछे पछताये ये ॥ ७॥ आनंद धन सर्वज्ञ जिनेश्वर चरण कमल को ध्यावे ।। सय जीयन से क्षमा करीजे गिरवर दास जनावे ये॥८॥ ("घोल मोरे भाई की चाल-विवाहमें) सरग लोकमरी अधाई.कि पोल मारे भाका सेठ सुदर्शन मूली पाई, कि गोल मेरे भाई ॥ भयो वि. मान मुरग मुखदाई, कि योल मेरे भाई ॥ १ ॥ मीना मती अगनि पर धाई, कि योल मेरे भाई ॥ देवन पनि कीन्हों आई, कि चोल मेरे भाई ॥२॥ तस्कर सनी मंत्र जपाई, कि योल मेरे भाई । सुरग जाप अनुन रिधि पाई, कि योल मेरे भाई ॥ ३॥ श्रीपाल कोटीध्वज राई, कि पोल मेरे भाई ॥ धर्म ननं नव निधि निन पाई, कि पोल मेरे भाई ॥ ४ ॥ रविद पोर मनी घरवाई, कि योल मेरे भाई । एमांकार ते मुरपद पाई, कि पोल मेरे भाई ॥२॥ वेगपती वृपधारी नारी, कि पोल मोरे भाई ।।
SR No.010236
Book TitleJain Gitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Sodhiya Gadakota
PublisherMulchand Sodhiya Gadakota
Publication Year1901
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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