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________________ वांधकर सेठजी वन वेठे, ऐसी ही एक दीन पुत्री ने सगाई के वक्त अपने वापसे कहा था. छंद-पांच सौ तो पहिले लीने तीन सौ की आरती।। तुम काकाजी भूल गये हो मैं तो हती हजार की ॥ खोटे खरे परख लीजो में होजाऊंगी पारकी ॥ मैं रोऊंगी तुम्हरे जी को, तुम होओगे नारकी ॥१॥ जिस प्रकार, कसाई वकरी, गाय आदि पशुओं को पालकर फिर उन्हें निर्दयी होकर मारता है, वैसे ही ये जाति के कुपूत, भाडखाऊ अपनी पुत्रियों को पालकर उनके गले में शिला वांधकर अंधे कुए में पटकते अर्थात् जल्दी मरनेवाले सफेदपोश बुद्धों को अधिक धन लेकर वचदेते हैं जिससे वे एक दो वार जाकर ही विधवा होजाती और वहुधा खोटे २ कर्म करने लगती हैं, कसाई तो पशुओंका वध करता और अपने बच्चों को पालता है परन्तु ये दुष्ट तो मनुष्यों का वध सोभी अपनी गरीव गयों अर्थात् पुत्रियों का नाश करते हैं। इसलिये इन्हें कसाई के वावा समझना चाहिये। इनके मुंह देखने से पाप लगता और छूनेसे नहाना होता है। कन्या वेंचनेवालों का घर नरक समान और धन विष्ठा समान है. यदि सच कहाजाय तो इस पाप के भागी जाति के वे मुखिये धनवान और पंच लोग हैं जो इस कुरीतिके सहाई हैं और जो जान वृझकर गरीव लड़कियों का गला कटवाते और आप ऊंचा
SR No.010236
Book TitleJain Gitavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Sodhiya Gadakota
PublisherMulchand Sodhiya Gadakota
Publication Year1901
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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