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________________ (२) कर जोड़ के, जिनराज का स्मरण किया ॥६॥ इन्हा अवतार ले, सत्य धर्म को प्रगट किया। चौथमल होवे सुखी, - जिनराज का स्मरण किया ॥ ७ ॥ ___ तर्ज पूर्ववत् । गज़ल सत्संग की। लाखों पापी तिर गए, सत्संग के परताप से । छिन में वेड़ा पार है, सत्संग के परताप ले ॥ टेर ॥ सत्संग का दरिया भरा, कोइ न्हाले इस में जानके । कटजाय तन के पाप सब, सत्संग के परताप से ॥ १ ॥ लोह का सुवर्ण पने, पारस के परसंग से । लट की भंवरी होती है, सत्संग के परताप से ॥२॥ रजा परदेशी हुवा, कर खून में रहते भरे । उपदेश सुन ज्ञानीबा , सतरांग के परताप से ॥३॥ संयती राजा शिकारी, हिरन के मारा था तीर । राज्य तज साधू हुवा, सत्संग के परताप से ।। ४ ॥ अर्जुन माला कारने, मनुप्य की हत्या करी । छः मास में मुक्ति गया. सत्संग के परताप से ॥ ५ ॥ एलायची एक चोर था. श्रेणिक नामा भूपति । कार्य सिद्ध उनका हुवा, सत्संग के परताप से ॥६॥ सत्सग की महिमा बडी, हैं दीन दुनियां बीच में । चौथमल बहे हो भता, सत्सग के परताप से ।। ७१,
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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