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________________ । १६ ) सांसारिक सुख, दुख, रूप वेदना पैदा करने वाला कर्म वेदनीय कहलाता है। ___ काम, क्रोध, अभिमान, माया, लोभ, मोह आदि वासनायें पैदा करने वाला कर्म मोहनीय है। किसी भी शरीर में जीव को रोक रखने के समय की मियाद को देने वाला आयु कर्म होता है। अच्छे, बुरे शरीर को पैदा करना नाम कर्म का कार्य है। अच्छे बुरे कुल में (ऊँच नीच जाति में ) जीव को उत्पन्न कराना गोत्र कर्म का काम है। होते हुए किसी कार्य में विघ्न डाल देना अन्तराय कर्म की कार्यवाही है। इस प्रकार कर्मों के ये मूल आठ भेद हैं किन्तु शाखाभेद बहुत से हैं। इस कर्म सिद्धान्त का खुलासा वर्णन बहुत लम्बा चौड़ा है। इसी कारण इस अकेले विषय पर बहुत बड़े अन्य बने हुए हैं। संकोच करने के विचार से इस विषय को हम यहीं पर समाप्त करके आचरण विषय पर आते हैं। प्राचरणा जैन धर्म पालन करने वाले दो भागों में बाँटे जा सकते हैं। एक गृहस्थ और दूसरे मुनि।
SR No.010232
Book TitleJain Dharm Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjit Kumar
PublisherBharatiya Digambar Jain Shastrartha Sangh Chhavani
Publication Year1934
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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