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________________ ( १२ ) अन्धकार और प्रकाश (उजाला) भी पुद्गल है । जिस समय सूर्य, चन्द्र, दीपक, बिजली आदि का संयोग मिलता है तब सब जगह भरे हुए पुद्गल स्कन्धों में अपनी जगह सफेद चमकीला रंग प्रकट हो जाता है। जिससे आँखों से दीख पड़ने योग्य प्रकाश बन जाता है और जिस समय उनका संयोग हट जाता है तब उन्हीं पुद्गल स्कन्धों में गहरा काला रंग जाहिर हो जाता है । जिससे अन्धेरे का रूप खड़ा हो जाता है। इस प्रकार पुद्गल (मैटर ) अनेक दशाओं में पाया जाता है और उलटता पलटता भी रहता है । धूप, छाया, प्रकाश, अन्धकार, चाँदनी, शब्द आदि सब पुद्गल की हालते हैं। कभी पानी से हवा, कभी हवा से पानी, कभी पानी से बिजली, कभी पार्थिव (जमीन की चीज ) से हवा आदि बन जाता है। जहाँ जैसा निमित्त कारण मिलता है। पुद्गल पदार्थ वैसी हालतों में बदल जाते हैं । कर्म सिद्धान्त । ว पुद्गल स्कन्धों में एक विशेष प्रकार के पुद्गल स्कन्ध होते हैं उनका नाम कार्माण स्कन्ध हैं । ये पुद्गल स्कन्ध सब जगह मौजूद है और केवल कर्म बनने के काम आते हैं । ta के भीतर एक योग नामक आकर्षण शक्ति ( कशिश करने की ताकत ) है और कार्मारण स्कन्धों में आकर्षण ( कशिश )
SR No.010232
Book TitleJain Dharm Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjit Kumar
PublisherBharatiya Digambar Jain Shastrartha Sangh Chhavani
Publication Year1934
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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