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________________ जैन धर्म मे तप नियायिनस्तपसा रक्षसो दह- तपस् तेज के द्वारा देवताओ ने राक्षसो को पराजित कर भगा दिया। तपसा चीयते ब्रह्म तप के द्वारा ही ब्रह्म-ज्ञान एव परमात्मपद प्राप्त किया जाता है । ____ तस्य तपो दम फर्मेति प्रतिष्ठा आत्मज्ञान का मूलाधार इन तीन बातो पर टिका है-तप, दमइन्द्रिय निग्रह) और सत्कर्म । तपो ब्रह्मति तप ही स्वय ब्रह्म है। ऋतं तप सत्यं तप श्रुतं तप शान्तं तपो दानं तपः ऋत (मन का सत्य सकल्प) तप है, सत्य (वचन-यथार्थ भापण) तप है, श्रुत (शास्त्र श्रवण) तप है, शाति (इन्द्रिय विपयो से विरक्ति-वैराग्य) तप है, और दान तप है । अर्थात् धर्म के समस्त अग तप ही हैं । ___सत्येन लभ्यस्तपसा ह्येष आत्मा यह आत्मा सत्य और तप के द्वारा प्राप्त किया जा मकता है। अर्थात् तप के द्वारा ही आत्मदर्शन व आत्मस्वरूप की प्राप्ति सभव है । ___ महाभारत (आदिपर्व ६०।२२) मे स्वर्ग के मात द्वार वताये हैं जिनमे पहला द्वार है-तप । इस प्रकार वैदिक दर्शन के मान्य ग्रथो को पढने पर पृष्ठ-पृष्ठ पर आपको तप की महिमा, उसकी अपारशक्ति और उसके विराट स्प का १ सामवेद पूर्वाचिक ११११११० २ मुण्डक उपनिपद १२११८ ३ केन उपनिपद् ४११ ४ तैत्तिरीय आरण्यक ६२ ५ तैत्तिरीय आरण्यक १०१८ ६ मुण्टक उपनिपद् ३३११५
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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