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________________ परिशिष्ट ४ ५७१ . श्रोताओं को आत्मशुद्धि की तरफ आकर्षित करने वाली कथा व्यवहार आक्षेपणी है। (ग) श्रोताओं की शंकाओं का समाधान करने वाली, उनकी श्रद्धा को दृढ़ बनाने वाली अथवा प्रज्ञप्ति (भगवती) आदि सूत्रों के व्याख्यान द्वारा तत्व के प्रति झुकाने वाली कथा प्रज्ञप्ति आक्षेपणी है। (घ) नय-निक्षेप आदि से जीवादि-सूक्ष्म तत्त्वों को समझाने वाली अथवा श्रोताओं की दृष्टि को विशुद्ध करने वाली अथवा दृष्टिवादविषयक व्याख्यान द्वारा तत्त्व के प्रति आकर्षित करने वाली कथा दृष्टिवाद आक्षेपणी है। २ विक्षेपणीधर्मकथा-श्रोता को कुमार्ग से हटाकर सुमार्ग पर लाने वाली धर्मकथा विक्षेपणी कहलाती है। इसमें कुश्रद्धा को हटा कर सुश्रद्धा स्थापित करने की दृष्टि रहती है। इसके चार भेद हैं :(क) स्व-सिद्धान्त के गुणों का प्रकाश करके पर-सिद्धान्तों के दोपों का . दर्शन कराना प्रथमविक्षेपणीकथा है । (ख) पर-सिद्धान्त का कथन करते हुए स्वसिद्धान्त की स्थापना करना द्वितीयविक्षेपणीकथा है। (ग) पर-सिद्धान्त में घुणाक्षर-न्याय से जितनी बातें जिनागम सदृश हैं .. उन्हें कहकर जिनागम विपरीत वाद के दोष दिखाना अथवा आस्तिकवादी का अभिप्राय बताकर नास्तिकवाद का निराकरण करना तृतीयविक्षेपणीकथा है। (घ) पर-सिद्धान्त में कही हुई मिथ्या वातों का वर्णन करके स्वसिद्धान्त द्वारा उनका निराकरण करना अथवा नास्तिकवादी की दृष्टि का वर्णन करके आस्तिकवाद की स्थापना करना चतुर्थविक्षेपणीकथा है। सर्वप्रथम आक्षेपणीकथा कहनी चाहिये, उससे श्रोताओं को यदि सम्यक्त्व का लाभ हो जाये तो फिर उनके सामने विक्षपणी कथा का प्रयोग करना चाहिये । इस कथा से सम्यक्त्वलाभ हो या,नहीं भी हो । अनुकूल रीति से ग्रहण करने पर शिष्य की सम्यकत्व दृढ़ भी हो सकती है लेकिन शिष्य
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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