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________________ ध्यान तप की-काली वीज है। ऐं-सरस्वती वीज है। : .. फट---अस्त्र बीज है। क्लीं-काम वीज है। ई-योनि वीज है। कुछ वीज ईप्टदेव के प्रयम अक्षरों के आधार पर भी बनाये जाते हैं । जैसे-अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, और साधु-इन पंच परमेष्ठी के प्रथमाक्षरों को लेकर 'असिआउसा' वीजाक्षर बन गया है। वैदिक ग्रन्यों में भी इस प्रकार के उदाहरण मिलते हैं-यथा गणेश के लिए 'ग' दुर्गा के लिए. 'दु' आदि । ___इन बीजाक्षरों के आधार पर अपने इष्ट देव (ध्यान रहे-ध्येय-इप्ट : . हमेशा ही वीतराग होना चाहिए, और ध्यान निष्काम भाव से करना चाहिए) . के स्वरूप का चिंतन करना पदस्य ध्यान है। रूपस्य ध्यान रूपयुक्त-इप्टदेव तीर्थकर आदि का चितन करना-रूपस्य ध्यान है -अहंतो रूपमालम्ब्य ध्यानं स्पस्यमुच्यते । इस ध्यान में फल्पना बड़ी सुरम्य और रंग-बिरंगी होती है। साधक एकांत शांत वातावरण में बैठा हुआ आयें मुदकर हृदय की आंखें खोल लेता है । आमाश को चित्रपट-पर्दा . बना लेता है, मन को कुंची। भगवान के दिव्य रूप, उनके समवसरण आदि । की रंग-बिरंगी कल्पनाओं में इतना लीन हो जाता है कि उसे जैसे लगता है, वह साक्षात् वहां बैठा प्रभु के पावन दर्शन कर रहा है, कानों से प्रवचनपीरूप धारा पो रहा है, और समवसरण का रम्य दृश्य देख रहा है । इष्टदेव के रूम सम्बन्धी विभिन्न इस्य बनाने चाहिए और उनमें गन को रमाना १ देखें--प्यान और मनोवल (डा० इन्द्रचन्द्र) १० . २ योगनास . .
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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