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________________ हमारा लक्ष्य -आत्मा अनन्त सुखमय, अव्यावाघ सुखो मे स्थिर रहने वाला है, यही उसका स्वरूप है, जिसे मोक्ष भी कहा है, उन सुखो का वर्णन करने के लिए कोई उपमा नहीं है। वधुओ | इस विवेचन से आपके सामने यह स्पष्ट हो गया होगा कि आत्मा चिदानन्दमय सुखरूप है चिदानन्दरूपो शिवोऽहं शिवोऽहं यही उसका स्वरूप है, हमारी यात्रा, इस स्वरूप की प्राप्ति के लिए ही है इसलिए हमारा लक्ष्य, हमारी मजिल है-स्वरूप की प्राप्ति । अर्थात् आत्मा को अपने ही रूप का दर्शन । "सपिक्खए अप्पगमप्पएण" । आत्मा को अपनी दृष्टि से देखना है, आत्मदर्शन करना है । अपने भीतर क्या-क्या शक्तिया छिपी हैं, किन-किन विभूतियो का यह पुज है, बस, इसका अवलोकन करना यही हमारी यात्रा का लक्ष्य है। इसे देखने, समझने के लिए कही दूर जाने की जरूरत नहीं, अन्यत्र भटकने की आवश्यकता नही । यह हीरो की खान तो तुम्हारे ही पास मे हैमहाकवि 'निराला' के शब्दो मे पास ही रे, हीरे की खान खोजता कहा अरे नादान । स्पर्शमणि तू हो अमल-अपार, रूप का फैला, पारावार खोलते-खिलते तेरे प्राण खोजता कहा उसे नादान ! आवश्यकता है-इन हीरो की खान को देखने वाली तेज दृष्टि की। इन चर्मचक्षुओ से यह खान नही दिखाई देगी, इसे देखना होगा-अन्तरदृष्टि से । अध्यात्म जगत की यह विचित्र वात है कि जब तक वाहर मे दृष्टि खुली है, अन्तर सृष्टि नही दिखाई देगी, बाहर की दृष्टि भेदकर अन्तर दृष्टि खोलो १ दशवकालिक चूलिका २।१२
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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