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________________ प्रायश्चित्त तप अपनी तबियत का ध्यान रखना चाहिए, रोग हो जाने के बाद यदि कोई सोचे कि अब डाफ्टर या वैद्य के पास जावूगा और लोगों को पता चलेगा तो लोग मुझे 'लोगो' 'चीमार' समझेंगे यदि ऐसा सोचकर कोई अपना रोग छिपा गार बैठा रहे, तो क्या वह स्वस्य व प्रसन्न रह सकता है ? स्वस्थता तभी रहेगी जब रोग दूर हट जायेगा, उसका उपचार किया जायेगा, इसी प्रकार जीवन में निर्दोपता और प्रसन्नता भी तभी जायेगी जय दोष को प्रकट कर उसका प्रायश्चित किया जाये ! जीवन में उल्लास, गन में हलकापन और हृदय में निमलता तभी प्राप्त होती है जब व्यक्ति का अन्तरजीवन निदोष हो । गौतम स्वामी के प्रश्न पर भगवान महावीर ने बताया है कि मालोचना करने से साधक माया, निदान एवं मियादर्शन रूप तीन शल्यों को निकालकर दूर कर देता है, कांटा निकालने गे जैसे गुण - अनुभव होता है, वैसे ही ये शल्य दूर हो जाने से हवा में अपूर्व मुखानुभूति होती है, सरलता और निदोपता लाती है तथा अन्तर-आत्मासिले हुए पागल की शांति प्रसन्नता एवं उल्लास से गमका उठती है।' आलोचना करने वाले के मन में पहले यह नगला जगता है कि गदि में मत पापों की आलोचना नही करगा तो मेरा इहलोग भी निन्दिता होगा, पर-लोया भी निदित होगा तथा मेरे भान-दर्शन-पादिर भी दूषित हो जायेगे-मलिए मुझे अपने पाप की आलोचना पर जीवन को पागस्वी गया शान दशंग आदि को नियों बनाना चाहिए। ___ आलोचना फोन कर सकता है? आलोचना मारने वाले माय शोम , माना और मिनार at areोक परलोक में मदद में या विमान मा सो मैंने भी सानोरना नही की. पोटामोतोको नमी ममता maam, काम : . . २॥
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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