SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 427
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म में ना खोपड़ियों का पास खाने उपटती ! आश्रमवासी परियाजक दंछ सेकर गायों को भगाते, मारते और अपनी-अपनी शॉपड़ी की रक्षा करते । किन्तु भगवान महावीर तो अपनी जोपड़ी में ध्यान लगाए सटे रहे। गायें उनकी झोपड़ी को माफ करने लगी तो परियाजकों ने कुलपति से शिकायत की--"यह मा तपस्वी कोन है, वैसा है ? गायें इसकी झोंपड़ी को पा रही है और यह उन्हें जगाता तक भी नहीं ? कंसा है यह तपस्वी।" पुलपति ने महावीर से कहा-'कुमार बर ! यह उदानीनता शिरा काम पी? एक पक्षी भी अपने घोंसले की रक्षा करता है, आप नियमार होनर भी अपनी झोपड़ी की रक्षा नहीं कर सकते ?" . गगवान महावीर गौन रहगार सब सुनते रहे। सोचने लगे---"नि राज महल को भी अपना नहीं समझा, उसकी भी रक्षा का मोह नहीं मा सो अद इस झोपड़ी को रक्षा का मोह गोगा ? क्या इस शॉपही की रक्षा के लिए मैं अपनी ध्यान समाधि का त्याग करटू ? भगवान महावीर माधम को छोहार अन्य पिहार पार गये। ऐसी पटनाओं से भगवान महावीर ने मानों की बालम व बिहार के प्रति कितनी ममत्व भावना होती है, यह स्पष्ट अनुगम किया होगा। न अपनी सोपड़ी के लिए गाधना को मिसना कर गायों को भगाना जाता है। घोर से ही अपना पग माग बैठता है। मोम प्रसार माय भावना पारमा सानी नाना में घाट मोमीनियमशन मावीर ने गायोगाराम रहने की शिक्षा वो अपने निजी का निर्माः परमाने मार दिया ! योre Aror
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy