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________________ जैन धर्म में सप ___ भिक्षु कौन है ? भिक्षु को पहचान क्या है ? इसके उत्तर में बताया है जो हायों को संयत रखता हो, परों को संयत रखता हो, वचन को और इन्द्रियों को संयत रखता हो, अध्यात्मभाव में लीन रहता हो, और शास्त्रों के ज्ञानाभ्यास में जिसकी आत्मा सदा प्रसन्न रहती हो यह भिक्षु है ! ___यहां हाय-पैर बचन व इन्द्रिय का संयम साधु को पहनान बताई गई है। हाथ-पैर इन्द्रिय आदि का संयम सभ्यता के लिए भी वहृत आवश्यक है। मनुष्य किसी सभा में या गुरुजनों आदि के समक्ष बैठता है, यहां भी यदि वह बार-बार हाथ-पैर हिलाता है, कभी पालथी मार गार, कभी पैर फैलाकार . . भोर कभी पांव दवाकर अलग-अलग आसन बदल कर बैठता है तो यह असभ्यता समाती जाती है। आसन की स्थिरता, ठीक आराम से बैठना या सभ्यता का नियम है । इसी प्रकार इधर-उधर आंग फाड़ना, बार-बार सार मीना-सोलना भी असभ्यता की निशानी है । आंगों को शांत व स्थिर रसकर सभा आदि में बैठने से व्यक्ति की गम्भीरता व संयमशीलता मी नमः मिलती है। बैठने उठने-चलने देखने में जितना संगम होता है, व्यक्ति उसना .. ही गम्भीर और महत्त्वपूर्ण माना जाता है । इसके विपरीत अंगों को पंचलता म. विलेपन, वनकाने स्वभाव तथा मानसिक अस्थिरता की घोराक होती है। पिर बासन, शिष्ट आसन और मिष्ट भाषण - गाम भान साले काक्ति हो भी अधियः मानी प्रशित कर सकते हैं। अत: शरीर के अवपयों का संयम नगना सभ्यता की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। दशवरानिक मूर में मतावा है हत्य पायं सायं घ पनिहाय जिइंथिए। अल्ती गुतो निलिए सगामे गुरुणो पुजी। गुरुजनों में समीर बैठने वालों को किस समय में माना चाहिए? इसका टमा मनोमनाहामको, पर ओशाको मुमin. rafe को भी इन्द्रिको को गु मर rein उन लोग गे गाकर मार पटना पालिसानी Frzrtी प्रति मदन बिना भी मंजगीमाना मीही
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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