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________________ रस-परित्याग तप २७१ भी सगाता है । यदि अस्वाद नाव नो आहार मारता है, तो आहार करता यह केवलमान भी प्राप्त गार गगता है। मूरगडग मुनि का उदाहरण हमारे गागन । जो आचार्य द्वारा खीगढ़ी में चूकने पर भी समभाव पूर्वक लाहार करो न और उग समय समता की माधना में इतने ऊन उठे कि बीवी साते-गाते ही केयलमानी हो गए। इस घटना में यह बात स्पष्ट होती कि आहार का लक्ष्य स्वाद नहीं, साधना होना चाहिए। यदि माधना हमारा ला तो भोजन भी उपसारक साधक होगा। भोगेपणा के पांच दोष स्वाद यत्ति मा परिहार करने के लिए अर्थात् सम-विजय के लिए शास्त्र में मांगेगमा के पांच दोष यताये, जिन्हें टानमार भोजन करना मार का परमय। यदि साधन मार गाना आम दोपों को नही टारमता तो उसका आहार करना भी पापा और उसमें उसी माधना मदिन पित हो जाती है। भगी गुम में बताया है - आहार मारता इन तीन को १ सगाल--- स्वादिष्ट भोजन प्राप्त पारसे उस सम में अनुष्यमा बार-गार मनोरन भी माने तो दम मा मालिन माजिर र कोपरगना निवजहो जाता है, अपना सोपवादित कामो कोपना माला। नाम--- Aaram TR E E का TREPRोगा की भारत का : ... ENTERTE सोना mrry . मा fari को
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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