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________________ जैन धर्म में तप २२४ क्रोध को कम करना, मान को कम करना, माया को कम करना, लोभ को कम करना, शब्दों का प्रयोग कम करना, (अल्पभाषी होना) कलह कम करना-यह है भाव ऊनोदरी ! द्रव्य ऊनोदरी में जहां साधक जीवन को बाहर से हलका, स्वस्थ व प्रसन्न रखने का मार्ग बताया है, वहां भाव ऊनोदरी में जीवन की अन्तरंग प्रसन्नता, आन्तरिक लघुता और सद्गुणों के विकास का पथ प्रशस्त किया गया है। जीवन विकास में तथा आत्म-कल्याण में कपाय-क्रोध मान आदि सब से वाधक तत्त्व हैं। जिस जीवन में कपायों की प्रचुरता रहती है उस जीवन में आनन्द और प्रसन्नता कहां से आयेगी। धधकती अग्नि के पास बैठकर यदि कोई शीतल लहर की इच्छा करे तो यह एक प्रकार की मूर्खता ही है, वैसे ही कपायों की वृद्धि करके यदि जीवन में शांति की कामना करे तो वह उससे भी बड़ी मूर्खता समझनी चाहिए । कपाय का अर्थ ही है, कलुपित करने वाला । प्रज्ञापना कपाय पद (१३) की टीका में बताया है फलसंति जं च जीवा तेण फसायत्ति वृच्चंति जिससे जीव कलुपित होते हैं, आत्मा मलिन होती हैं, उन्हें, अर्थात् उन वत्तियों को कपाय कहा जाता है । क्रोध, मान माया लोभ आदि से कितना अनर्थ होता है और इन्हें कैसे वश में किया जाय, उन पर विजय कैसे प्राप्त हो इसका विशद विवेचन प्रतिसंलीनता तप के अन्तर्गत-कपाय प्रतिसंली. नता में किया जायेगा, अत: यहां पर तो इतना ही निर्देश है कि इन कोष आदि की कमी करने का प्रयत्न करें। विवेक जगाकर उनके अनर्थ कारी परिणामों का चिन्तन कर साधक सोच-कपाय बढ़ते हैं तो जीवन में अशांति बढ़ती , कपार घटती है तो जीवन में बगांति कम होती है, शांति की लहर उठती है, यदि शांति प्राप्त करने की इच्छा है तो कपायों को काम कारो। इसने शांति प्राप्त होगी-बस यही फपायों को ऊनोदरी का फल है। अल्पभाषण भाव ऊनोदरी का पांचवां रूप बताया गया है-अप्पसह-अल्पशब्द
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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