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________________ . जैन धर्म में तप.. १६८ डालते हैं, स्वास्थ्य चौपट कर डालते हैं। कंडरीक का उदाहरण भी मापके सामने दिया गया है, वह साधुत्व से भ्रष्ट होकर कुछ दिनों में ही क्यों मर गया ? इसका कारण स्पष्ट बताया गया है-अति मात्रा-में भोजन- . पान रस आदि विषयों में गृद्ध होकर । रात-दिन स्वादिष्ट-गरिष्ठ भोजन करता रहा, वह हजम नहीं हुआ, शरीर में रोग फूट पड़ा। रोग होने पर . भी स्वादिष्ट-गरिष्ट भोजन छोड़ नहीं सका, रोग बढ़ता गया और अंत में दुःख पाता हुआ मरकर सातवीं नरक में गया ! .. भोजन में जब ऐसी लोलुपता आ जाती है तो उनके सामने जीवन और स्वास्थ्य का भी कोई महत्व नहीं रहता, वे तो बस खाना ! साना ! यही रट लगाये रहते हैं। किंतु यह अन्न-मूढ़ व्यक्तियों की बात हुई । साधारणतः विचारशील भोजन करता है तो उसमें संयम भी बरतता है, उस भोजन का उद्देश्य भी होता है । गांधी जी से किसी ने पूछा-"आप भोजन मिसलिए करते हैं ?" गांधी जी ने कहा-"दास की तरह शरीर को पालने मे लिए।" कवीरदास जी ने भी यही बात कही है- कि भूख एक पुतिया है, ... यह भौंकने लगती है तो हमारा चित्त चंचल हो उठता है, मन अशांत हो जाता है, अत: मन को शांति बनाये रखने के लिए और स्थिरता के साय भजन करने के लिए इस भूख-कूतरी को रोटी का टुक्या दालना जरूरी है "भूख कचौरा कूतरी करत भजन में मंग।" बस भोजन करने का यही उद्देश्य है- क्षुधा शांत फार साधना मो रहना । विचारलों ने भोजन करने वालों को तीन श्रेणियां की हैं१-स्वाद के लिए भोजन करने वाले-ये अशानी और मृगं लोग हैं, से याद की चाट में बर्वाद हो जाते हैं, मगर व धन को चौपट कर आरन यह सबसे नीची अंगी है। २~स्यास्य को लिए भोजन करने वाले से जीवन को बाबत माग करने वाले लोग है। शरीर व स्वारको रक्षा का पद्धि करना उनमा उद्देश्य है। ये स्वाद के लिए गंगा भी गाते हैं पर याद
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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