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________________ १५६ मनशन तप तो ऐसे अपवित्र कर्म, पाप और निकृष्ट आचरण मनुष्य पेट के लिए करता है । अर्थात् भूख से व्याकुल होकर जो चाहे सो पाप पारने को तैयार हो जाता है। जब तक पेट में भूख रहती है, भगवान याद नहीं आते"भूले भजन न होय गोपाला।" सन्न का महत्व इस दुभर पेट को भरने का, भूख को मिटाने का साधन है रोटी! अन्न ! कहावत है-"भूरो पेट को क्या चाहिए ? दो रोटी !" बन्न का पुजारी पुकारता है-"सारी बात सोटी एफ सिरं दाल रोटी है।" जब तक शरीर है तब तक भूख है, और भूख मिटाने के लिए अन्न है । अत: गोरधारण के लिए अन्न सबसे महत्वपूर्ण वस्तु है ? इसीलिए वैदिक प्रापियों ने अन्न को प्राण कहा है-अन्नं ये प्राणा:---अन्न ही प्राण है। उपनिषद के अध्यात्मज्ञानी पिजनों ने भी अन्न की महिमा गाते हुए कहा है-अन्नेन पाय सर्व प्राणा महीयन्ते -अन्न से हो गब प्राणों की महिमा स्थिर रहती है । अन्न न हो, तो हीरे जवाहर मोती माणः गया काम फे? कहा जाता है कि एक धनाड्य सेठ एक बार अपने पर में सोचा था । पहरेदार बाहर से घर बंद करके कहीं नाला गया । सेठ भीतर ही बंद रह गया। उसे भूप लगी तो भंगार सोले, मगर अन्न का दाना यहां नहीं मिला। हीरे मोती से तिजोरियां भरी पो, किंतु अन्न के बिना उनका पया करता ? पहरेदार माया नहीं, दूस-या से तिलमिलाता सेठ भीतर ही भीतर दम तोड़ने लगा। सभी पहरेदार पहुंचा, उत्तने गमरा सोला, नेक गरजासान पड़ाया, मरते दम उसके मुंह में इतना ही निकला "जवाहर के हजार दानों में ज्यार फा एक दाना बेहतर है।" जब पेट में भय को बाल सुलगती है, सब सही उमे गान्त कर सकता १ छा जाब सरीरं हाय रिय साचारांग यूलिया २२ २ ऐतरेय ग्राहण ३० ३. समितीय अनिषद !
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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