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________________ ११२ . . जैन धर्म में तप चेलना के साथ आनन्द क्रीड़ा करता हुआ अपने यौवन को सफल बना रहा है । इसने सचमुच ही मानव जीवन का आनन्द लिया है । यदि हमारे तप, विनय, ब्रह्मचर्य आदि का भी कुछ सुफल हो तो हम भी अगले जन्म में इसी प्रकार जीवन का आनन्द लेवें।" इधर रानी चेलना को देखकर श्रमणियों के मन भी चंचल हो उठे। वे भी सोचने लगीं-"यह रानी चेलना धन्य है ! इसका जीवन सफल है। .. इसे कितना सौन्दर्य व लावण्य मिला है, राजा श्रेणिक का प्यार मिला है और कितने आनन्द के साथ यह अपना मानव जीवन सफल बना रही है। ..... यदि हमारे तप, नियम, ब्रह्मचर्य, आदि का कुछ फल हो तो हम भी अगले जन्म में इसी प्रकार के काम-भोग भोग कर जीवन का आनन्द लेवें।" इन विचारों का प्रवाह ऐसा उमड़ा कि अनेक श्रमण एवं श्रमणी एक ही विचारधारा में वह गये । उनके मन चंचल हो उठे और वे ऐसा संकल्प कर बैठे । सर्वज्ञ प्रभु महावीर ने अपने ही सामने जब अपने शिष्य परिवार को यों इतने दीर्घकालीन तप-नियम व्रतों की बलि देते देखा और .. तुच्छ भोगाभिलाषा के कीचड़ में फंसते देखा तो प्रभु ने तुरंत संबोधित किया। श्रमण वृन्द को जागृत किया और कहा-“हे श्रमणो ! राजा श्रेणिक और चेलना के युगल को देखकर तुम लोगों ने ऐसा संकल्प (निदान) किया है ?" ___ सभी ने नीचे मस्तक झुकाकर स्वीकृति की-"हां ! प्रभु ! ऐसा संकल्प . हमारे मन में जगा है।" प्रभु ने श्रमण-धमणी वृद को उद्बोधन देते हुए कहा-"आयुष्मान् श्रमणो ! जानते हो इस प्रकार के निदान का कितना भयंकर फल होता है ? तुम्हारे दीर्घकाल तक आचरण किये हुए तप, नियम, ब्रह्मचर्य आदि व्रतों का जो महान फल होने वाला था, वह अब अति तुच्छ फल रह गया है। महासमुद्र सूखकर छोटा सा गड्ढा रह गया है । तुमने अपना सर्वस्व खो. दिया । इस निदान के कारण तुम अगले जन्म में संकल्पित काम भोग तो .. प्राप्त कर सकते हो, लेकिन अपने धर्म से, सम्यकत्व से भ्रष्ट हो जावोगे, और लास प्रयत्न करने पर भी केवली प्ररूपित धर्म का श्रवण भी नहीं कर . र
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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