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________________ . जैन धर्म में तप दर्शन में 'नियाणा-निदान' के नाम से प्रसिद्ध है । आचार्य अभयदेव ने निदान की परिभाषा करते हुए बताया है-' 'अक्षय मोक्ष सुखों का आनन्द रूप . फल वरसा देने वाली ज्ञान, तप आदि की लता, जिस इन्द्रचक्रवर्ती भादि के भोगों की अभिलापा रूप परशु (कुल्हाड़ी) से काटी जाती है-उस भोगाभिलापा रूप कुल्हाड़ी को निदान कहते हैं ।" किसी देवता अथवा राजा आदि मनुष्य की ऋद्धि व सुखों को देखकर, या सुनकर उसकी प्राप्ति के लिए अभिलापा करना कि मेरे ब्रह्मचर्य व तप आदि के फलस्वरूप मुझे भी ऐसी ऋद्धि व वैभव प्राप्त हो, और अपने तप अनुष्ठान को उसके लिए बद्ध कर देना निदान है । निदान-शब्द का अर्थ है-निश्चय अथवा वांध देना। उच्च तप को, निम्न फल की अभिलापा के साथ बांध लेना, महान् ध्येय को तुच्छ संकल्प-विकल्प रूप भोग प्रार्थना के लिए जोड़ देना यह होता है निदान । का अर्थ । इस निदान को शल्य-अर्थात् आत्मा का कांटा कहा है। . . निदान शल्प . श्रमण सूत्र में तीन प्रकार के शल्य बताये गये हैं-माया शल्य, निदान शल्य और मिथ्यादर्शन शल्य !3 आचार्य हरिभद्र ने शल्य की व्युत्पत्ति .. करते हुए कहा है-शल्यतेऽनेनेति शल्यम् ---जो हमेशा सालता रहे, वह शल्य है । जिस प्रकार शरीर के किसी भाग में कांटा, कील अथवा तीर आदि तीक्ष्ण वस्तु घुस जाये तो वह समूचे शरीर को वेचैन कर देती है, जब तक वह नहीं निकले भीतर ही भीतर सालती रहती है, उसी प्रकार भोगा १ निदायते लूयते ज्ञानद्याराधना लताऽऽनन्द-रसोपेत मोक्षफला, येन परशुने. व देवेन्द्रादिगुणद्धि प्रार्थनाध्यवसायेन तनिदानम् । -स्थानांग १० वृत्ति (ख) स्वर्ग मादि ऋद्धि प्रार्थने -स्थानांग, वहीं पर, .. २ दिव्य-मानुष ऋद्धि संदर्शन प्रवणाभ्यां तदभिलाषाऽनुष्ठाने -आवश्यक ४ . (ख) भोगप्रार्थनायाम् -व्यवहार भाप्य वृत्ति . ३ श्रमणसूत्र शल्य सूत्र ४ हारिगद्रीय आवश्यक वृत्ति
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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