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________________ . जैन धर्म में तप भी भस्म किया जा सकता है । उत्कृष्ट शक्ति-प्रयोग में १६।। महाजनपदों . . . को एक साथ भस्म कर डालने की शक्ति भी इस लब्धि धारक में होती है । भगवती सूत्र में बताया गया है कि जब भगवान महावीर छद्मस्थ थे तो गौशालक उनके साथ-साथ घूमता था। एक बार उसने वैश्यायन नामक बाल तपस्वी को छेड़ लिया । तपस्वी ने क्रुद्ध होकर गौशालक को जला डालने के लिए तेजोलेश्या छोड़ी। तव गौशालक भयभीत होकर चीखता हुआ भगवान महावीर के बगल में आकर छुप गया। भगवान ने उस दीन . प्राणी की रक्षा करने के लिए परमशीतललेश्या का प्रयोग किया जिससे आग शांत हो गई। गौशालक इस शक्ति के चमत्कार से बड़ा प्रभावित हुआ। उसने अनुनयविनय कर भगवान से तेजोलेश्या साधने की विधि पूछी । प्रभु ने उसे बताया- छह महीने तक निरंतर वेले-बेले तप करके सूर्य मंडल के सामने दृष्टि रखकर खड़े रहना और पारणे में मुट्ठीभर उड़द के वाकले. और चुल्लू भर पानी लेना । लगातार छह मास तक इस प्रकार की तपश्चर्या करने से थोड़ी बहुत मात्रा में तेजोल ब्धि की प्राप्ति होती है। गौशालक कुछ समय बाद भगवान से अलग हो जाता है और हाला.. हला नामक अपनी भक्त कुम्हारिन की भट्टीशाला में छह महीने तक साधना कर तेजोल ब्धि प्राप्त करता है। __ यह तेजोलव्धि आज के अणुवम से भी अधिक विस्फोटक है । हां, तेजोलब्धि का प्रयोग जिस पर जितनी दूर तक संकल्प करके किया जाता है उतने ही क्षेत्र को वह प्रभावित करती है, जबकि बम तो फटने के बाद .. विध्वंस भी करता है और वायुमंडल को दूपित भी ! इस तेजोलेश्या के प्रयोग से वायुमंडल दूपित नहीं होता है। (२४) आहारकलब्धि-कभी-कभी तपस्वी मुनियों के समक्ष कुछ समस्याएँ व कुछ परिस्थितियां आ जाती हैं जिनका समाधान करने के लिए वे इस आहारक लब्धि का प्रयोग करते हैं। किसी प्राणी की रक्षा करना १ भगवती मूत्र मतक १५ .
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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