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________________ ८७. तप और लब्धियां हो, या मन में कभी कुछ संशय खड़ा हो गया हो, और उत्तर देने वाला पास में न हो, तथा तीर्थंकरों की अद्भुत ऋद्धि का दर्शन करने की भावना जग गई हो और वे दूर विचर रहे हों तो मुनि उस प्रयोजन को पूरा करने के लिए आत्म-प्रदेशों से एक स्फटिक के समान उज्ज्वल एक हाथ का पुतला बनाते हैं और उसे तीर्थंकर अयवा सामान्य केवली के पास भेजकर अपने प्रश्नों का उत्तर मांगते हैं, उनके दर्शन करते हैं । तथा किसी की रक्षा करनी हो-तो वह भी कर लेते हैं । पुतला वापस लौट आता है और पुनः आत्मप्रदेशों में विलीन हो जाता है । यह लब्धि चौदहपूर्वधारी मुनि को ही प्राप्त हो सकती है। (२५) शीतललेश्या लब्धि - यह तेजोलेश्या की प्रतिरोधी शक्ति है। तेजोलेश्या के द्वारा भड़कायी गई अग्नि को समाप्त करने के लिए शीतल लेश्या लब्धि धाक जब करुणाभाव से प्रेरित होकर सौम्यदृष्टि से निहारता है, तो क्षण भर में ही धधकते दावानल को शांत कर देता है । गौशालक पर करुणा-द्रवित होकर भगवान महावीर ने उसे बचाने के लिए शीतल लेश्या का प्रयोग किया तो क्षण मात्र में ही वैश्यायन की तेजोलेश्या शांत हो गई। शीतल लेश्या भी एक आध्यात्मिक तेज है, किंतु यह उष्ण नहीं,शीत है । इसकी शक्ति मारक नहीं, तारक है, शामक है । अग्नि को शांत करने के लिए जैसे जल है, वैसे ही तेजोलेश्या को शांत करने के लिए उसकी प्रतिरोधी आत्मशक्ति है- शीतललेश्या । (२६) वैक्रिय देह लब्धि-प्रस्तुत में जनदर्शन विक्रिया का अर्थ करता है विविध क्रिया, अनेक प्रकार के रूप,आकार आदि की रचना करना विक्रिया या वैक्रिय कहलाता है । वैक्रिय देहलब्धि से शरीर के छोटे-बड़े विचित्र सुन्दर और भयंकरतम रूप बनाये जा सकते हैं । एक रूप के हजारों रूप भी बनाये जा सकते हैं । चींटी से भी सूक्ष्म और अति विशाल रूप बनाने की क्षमता वैक्रिय देहलब्धि धारक को प्राप्त होती है।। मुनि विष्णुकुमार ने संघ की रक्षा के लिए नमुचि से तीन पांव रखने
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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