SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १४ ) बंधकी पुद्गल वर्गणाएँ दूर नहीं कर दी जायगीं तब तक मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती है । अतः संवर अर्थात् हर समय आत्मामें आनेवाली कर्मवर्मणाओंको आश्रवेत न होने देना मुक्ति प्राप्त करनेके मार्ग में प्रथम श्रेणी अथवा पादुकाके रूपमें है । (६) जब अन्य श्गुल वर्गणाओंका आश्रव होना रुक जाता है तब दूसरी श्रेणीमें उन पूर्व संचित कर्म वर्गणाओंको एक एक कर निकालना रह जाता है । यही दूसरी श्रेणी निर्जरा तत्व है | जत्र समस्त कर्मबंध तोड़ दिए जाते हैं और आत्माका पुद्गलसे किसी प्रकारका संबंध नहीं रहता तर आत्मा अपने स्वाभाविक गुण स्वतंत्रता, सुख और केवलज्ञानका अनुभव करती है ।
SR No.010230
Book TitleJain Dharm Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages29
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy