SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१३) दिर गए हों, जिसके कारण वह उड़ नहीं 'सकती है । आत्मा अथवा जव चिड़ियाके तरह वास्तवमें स्वतंत्र है। परंतु पुद्गलके सम्बन्धके कारण अपने पंख कटे हुए सा समझना है और अपने स्वाभाविक सुख व स्वतंत्रताका उपभोग नहीं कर सक्ता है। . :: (४) घंध अत्मामें कर्म वर्गणाओं का आ श्रधित होकर काल स्थिति के लिए मिल जाकर ठहर जाना ही है जैसा ऊपर वर्णन कर चुके हैं। निर्वाण अथवा मोक्ष प्राप्त करने में पहिले इन कितने ही प्रकारके बंधनोंको तोड़ना ही पड़ता है। ... (५) संवर तत्व माश्रवका प्रतिकारक है अर्थात् आत्मामें कर्ममलको एकत्रित होनेसे रोकता है। प्रत्यक्षतः जब तक आत्मासे कर्म
SR No.010230
Book TitleJain Dharm Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages29
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy