SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १५ ] असत्यमप्रत्ययमूलकारणम् । असत्य अविश्वास का मूल कारण है। अतः विश्वास चाहनेवाले को असत्य का त्याग करना चाहिए । (पृष्ठ ४७-२४) ण भाइयव्वं, भीतं खु भया अइति लहुयं । भय से डरना नहीं चाहिए । भयभीत मनुष्य के पास भय भीघ्र बाते हैं। (पृष्ठ ५६।२) कोहो पीइं पणासेइ, माणो विणयनासणो। माया मित्ताणि नासेइ, लोभो सव्व विणासणो। क्रोध प्रीति का नाश करता है, मान विनय का, माया मैत्री का और लोभ सभी सद्गुणों का विनाश कर डालता है। (पृष्ठ ६०।१०) माणविजए णं मद्दवं जणयई । अभिमान को जीत लेने से मृदुता (नम्रता) जागृत होती है। (पृष्ठ ६४१५) सयणस्स जणस्स पिओ, णरो अमाणी सदा हवदि लोए । णाणं जसं च अत्थं, लभदि सकज्जं च साहेदि । निरभिमानी मनुष्य जन और स्वजन-सभी को सदा प्रिय लगता है। वह ज्ञान, यश और सम्पत्ति प्राप्त करता है तथा अपना प्रत्येक कार्य सिद्ध कर सकता है । (पृष्ठ ६१६) सक्का वण्ही णिवारेतु, वारिणा जलितो बहिं । सव्वोदही जलेणावि, मोहग्गी दुण्णिवारओ।।
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy