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________________ १४२ जैनधर्म की हजार शिक्षाएँ १०. धम्मोऽवि जो सम्बो, न साहणं किंतु जो जोग्गो। -विशेषा० भाष्य ३३१ सभी धर्म मुक्ति के साधन नहीं होते, किन्तु जो योग्य है, वही साधन होता है। १.१ विवेगा माक्खा। -आचारांगचूणि १७१ वस्तुतः विवेक ही मोक्ष है। १२. नाशाम्वरत्वे न सिताम्बरत्वे, न तर्कवादे न च तत्त्ववादे । न पक्षसेवाश्रयणेन मुक्तिः, कषायमुक्तिः किलमुक्तिरेव ।। -हरिभद्रसूरि मुक्ति न तो दिगम्बरत्व में है, न श्वेताम्बरत्व में, न तर्कवाद में है, न तत्त्ववाद में तथा न ही किसी एक पक्ष की सेवा करने में है । वास्तव में क्रोध आदि कषायों से मुक्त होना ही मुक्ति है। १३. परमार्थतस्तु ज्ञानदर्शनचारित्राणि मोक्षकारण न लिंगादीनि । -उत्तराध्ययनचूर्णि २३ परमार्थ दृष्टि से ज्ञान, दर्शन और चारित्र ही मोक्ष का मार्ग है, वेप आदि नहीं। १४. सम्यग्दर्शन ज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः । -तत्त्वार्थसूत्र १११ सम्यग दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यग् चारित्र-यही मोक्ष का मार्ग है। १५. परिणिव्वुत्तो णाम रागट्ठोसविमुक्के । -उत्तराध्ययनचूर्णि १० राग और द्वेष से मुक्त होना ही परिनिर्वाण है ।
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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