SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मोक्ष-मार्ग १४१ नाणस्स सव्वस्स पगासणाए अन्नाणमोहस्स विवज्जणाए । रागस्स दोसस्स य संखएणं, एगंतसोक्खं समुवेइ मोक्खं ॥ -उत्तराध्ययन ३२।२ ज्ञान के समग्र प्रकाश से, अज्ञान और मोह के विवर्जन से, राग एवं उप के क्षय से, आत्मा एकान्त सुख-स्वरूप मोक्ष को प्राप्त करता है। णाणं पयासगं, मोहओ तवो, संजमो य गुत्तिकरो। तिण्हं पि समाजोगे, मोक्खो जिणसासणे भणिओ ॥ -आवश्यकनियुक्ति १०३ ज्ञान प्रकाश करनेवाला है, तप विशुद्धि एवं संयम पापों का निरोध करता है । तीनों के समयोग से ही मोक्ष होता है—यही जिनशामन का कथन है। मोक्षोपायो योगो ज्ञान-श्रद्धान-चरणात्मकः । -अभिधानचिन्तामणि ११७७ योग, ज्ञान-दर्शन-चारित्रमय है एवं मोक्ष का उपाय है। सव्वारंभ-परिग्गह णिक्वेवो सव्वभूतसमया य । एक्कग्गमणसमाहाणया य, अह एत्तिओ मोक्खो ।। --बृहत्कल्पभाष्य ४५८५ सब प्रकार के आरम्भ और परिग्रह का त्याग, सब प्राणियों के प्रति समता और चित्त की एकाग्रतारूप समाधि-बस इतना मात्र मोक्ष है। नाण-किरियाहिं मोक्खो।। ___--- विशेषावश्यकभाष्य ३ ज्ञान एवं क्रिया (आचार) से ही मुक्ति होती है । ७. ८.
SR No.010229
Book TitleJain Dharm ki Hajar Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1973
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy