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________________ २. ज्योतिर्धाम आचार्य जम्बू सर्वज्ञ श्रीसम्पन्न ज्योतिर्धाम आचार्य जम्बू भगवान् महावीर के द्वितीय पट्ट"धर थे। उनके जीवन का हर प्रसग साधना-शिलोच्चय के समुन्नत शिखर का जगमगाता दीप है। युग पर युग आए और बीत गए। अनन्त वैभव-भरे कलश रीत गए पर उस दीप की निमशिखा समय की परतो को चीरकर अकप जलती रही। ____ आचार्य जम्बू श्रेष्ठी पुन थे। उनका गृहस्थ जीवन आनन्द से भरा था। वे राजकुमार नही थे पर सुख-सुविधाओ के भोग मे राजकुमार से कम नहीं थे। उनका जन्म वी० नि० पू० १६ (वि० पू० ४८६) मे राजगृह मे हुआ । राजगृह मगध की राजधानी थी । सम्राट् श्रेणिक के शासन मे उसकी शोभा स्वर्ग को भी अभिभूत कर रही थी। __ जम्बू के पिता का नाम ऋषभदत्त और माता का नाम धारिणी था। ऋपभदत्त राजगृह के इभ्य श्रेष्ठी थे । लक्ष्मी की अपार कृपा उन पर थी। मणि, रत्नो से बतियाती छते और स्वर्ण से चमकती पीताभ दीवारें उनके अत्यन्त समृद्ध जीवन की प्रतीक थी। धारिणी सद्धर्मचारिणी महिला थी। गजगामिनी गति, मरालमनीषा, प्रबुद्धविवेक, वाणी-माधुर्य आदि गुण उसके जीवन के अलकार थे। सब तरह से सुखी होते हुए भी राजमहिपी धारिणी पुनाभाव से चिन्तित रहती थी। एक दिन उसने श्वेतसिंह का स्वप्न देखा । जसमिन नामक निमित्तज्ञ ने उसे बताया था"जिस दिन पुत्र का गर्भावतार होगा, तुम श्वेतसिंह का स्वप्न देखोगी।" निमित्तज्ञ के द्वारा की गई घोषणा के अनुसार धारिणी को विश्वास हो गया-एक दिन अवश्य ही सिंह शावक के समान पुत्र की उपलब्धि उसे होगी। धारिणी शिष्ट, सुदक्ष और सुशिक्षित नारी थी। वह जानती थी, गर्भस्थ डिम्ब माता से भोजन ही ग्रहण नहीं करता, जननी के आचार-विचार-व्यवहार के सूक्ष्म सस्कारो का सक्रमण भी उसमे होता है। सदाचारिणी माता की सन्तान अस्सी प्रतिशत सदाचारिणी होती है। मनोविज्ञान की इस भूमिका से सुविज्ञ धारिणी सन्तान को सुसस्कारी बनाने के लिए विशेष सयम से रहने लगी और
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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