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________________ अध्याय १ १. श्रमण-सहस्त्राशु आचार्य सुधर्मा श्रमण सहस्राशु आचार्य सुधर्मा का स्थान प्रभावक जैनाचार्यों की परम्परा मे अतीव आदरास्पद है। सर्वज्ञ, सर्वदर्शी भगवान् महावीर के प्रत्यक्ष दर्शन से लाभान्वित एव उनकी सन्निधि मे साधनानन्द के मकरन्द कणो का पाथेय प्राप्त, पुण्य-श्लोक आचार्य सुधर्मा वीर निर्वाण से अब तक ढाई हजार वर्ष के अन्तराल काल मे एक है। । उनका जन्म कोल्लाग मन्निवेश निवासी ब्राह्मण परिवार मे वी०नि०८० (वि० पू० ५५०) वर्ष पूर्व हुआ । अग्निवेश्यायन गोत्रीय धम्मिल के वे पुत्र थे। माता का नाम भहिला था। वैदिक दर्शन का उन्हे अगाध ज्ञान था। समस्त ब्राह्मण समाज पर उनके पाण्डित्य का प्रभाव था । पाच सौ विद्यार्थी उनसे पढा करते थे। श्रमण धर्म की भूमिका मे प्रवेश पाने का उनका जीवन-प्रसग अत्यन्त रोचक है । मर्वज्ञोपलब्धि के बाद श्रमण भगवान महावीर एक वार जभियग्राम से मध्यम पावापुरी मे आए । उसी नगर मे सोमिल ब्राह्मण महायज्ञ कर रहा था। उन्नत विशाल कुलोत्पन्न, वेदविज्ञ ग्यारह विद्वान (गणधर) गोव्वर ग्रामवासी गौतम गोत्रीय, इन्द्रभूति, अग्निभूति,वायुभूति, कोल्लाक मन्निवेशवासी भारद्वाज गोत्रीय व्यक्त, अग्नि वैश्यायन गोत्रीय सुधर्मा, मोरिय सन्निवेशवासी वाशिष्ठ गोत्रीय मडित, काश्यप गोत्रीय मौर्यपुत्र, मिथिलावासी गौतम गोत्रीय अकपित, कोशलचासी हारित गोत्रीय अचल म्राता, तुगिय सन्निवेशवामी कौडिन्य गोत्रीय मेतार्य तथा राजगृहवामी कौडिन्यगोत्रीय प्रभास सभी सोमिल के यज्ञानुष्ठान की सफलता के लिए वहा आ रहे थे। उनके साथ चौआलीस सी शिष्यो का परिवार था । ग्यारह ही विद्वानो का गर्व आकाश को छू रहा था। समग्र ज्ञानसिन्धु पर वे अपना एकाधिपत्य मानने लगे थे। समाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, तर्कशास्त्र, न्याय, ज्योतिप,दर्शन, अध्यात्म,धर्म, विज्ञान, कला और साहित्य किसी भी विषय पर उनमे लोहा लेने वाला कोई भी व्यक्ति उनकी दृष्टि मे नही था। उन्होने अपार जनसमूह को महावीर की ओर बढते देखा। उनका अह-नाग फुफकार उठा । सोचा-'कोई ऐन्द्रजालिक दम्भी-मायावी आया है। वह किसी
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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