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________________ आचार्यों के काल का सक्षिप्त सिंहावलोकन ३३ (ख) तह गद्दभिल्लरज्जस्स, छेयगो कालगारिओ हो ही। छत्तीस गुणोवेमओ गुणसयकलिओ यहाजुत्तो ॥१॥ (दुष्पमाकाल श्री समण सघ स्तोत्र अवनि) २२ सागारियमप्पाहण, सुवन्न सुयसिस्स खत लक्खेण कहणाएसिस्सा गमण धुली पूजोवमाण च ॥२३॥ आयरिया भणति सुदर, मा पुण गव करिज्जासि । ताहे धूली पुञ्ज पिछते करेंतिधूली हत्येण घेत्तु तिसु ठाणेसु ओयारति-जहा एस धूली ठविज्जमाणी अक्खिप्पमाणी य सव्वत्थ परिसडई एव अत्यो वितित्थगरेहितो गणहराण, गणहरेहितो जाव अम्ह मायरि अवज्झायाण पर एण आगय, को जाणइ कस्स केइ पज्जाया गलिया ता मा गव्व काहिसि, अज्ज कालिया सीसय सीसाण अणुयोग कहेउ । (बृहत्कल्प भाष्य, भाग १, पन ७३, ७४) २३ कालियसुयच इसिभासिआइ तहमओ अ सूरपन्नत्ती। सम्वोअ दिद्विवाओ चउत्थओ होइ अणुमोगो ॥१२४।। (आवश्यक नियुक्ति) २४ वदामि मज्जरक्खिय, खमणे रक्खिनचरित्त सव्वस्से । रयणकरडगभूओ, अणुओगो रक्खिो जेहिं ॥३२॥ (नन्दी थेरावली २) २५ गोदासगणे, उत्तरवलिस्सहगणे, उद्देहगणे, चारणगणे, उद्वाइयगणे, विस्सवाइयगणे, कामट्ठियगणे, माणवगणे, कोडियगणे । (ठाण ६२६) २६ "इत्थ दूमह दुभिक्खे दुवालसवारिसिए नियत्ते सयलसघ मेलिम आगमाणुओगो पवत्तिओ खदिलायरियेण ।" (विविध तीर्थ कल्प, पृ० १९) २७ अत्यि मुहराउरीए सुयसमिद्धो खदिलो नाम सूरी तहा वलहि नयरीए नागज्जुणो नाम सूरी। तेहि य जाए वरिसिए दुक्काले निव्वउ भावमोवि फुठ्ठि (१) काऊण पेसिया दिसोदिस साहवो गमिउ च कहविदुत्थ ते पुगो मिलिया सुगाले, जाव सज्झायति ताव खडखरुडीहूय पुव्वाहिय । (कहावली) २८ श्रीकल्पसूत्र श्रीमहागिरिसतानीयश्रीदेवधिगणिक्षमाश्रमण लिखित तस्मिन्वय् आनदपुरे ध्रुवसेननृपस्य पुनमरणे शोकात्तस्य समाध्यर्थं सभासमक्ष श्रीकल्पवाचना जाता इति बहुश्रुता ॥ (दुष्पमाकाल श्री श्रमण सघ स्तोत्र) २९ "श्रीदेवद्धिगणिक्षमाश्रमणेन श्रीवीरादशीत्यधिकनवशत (९८०) वर्षे जातेन द्वादशवर्षीय दुर्भिक्षवशाद् बहुतरसाधुव्यापत्तो बहुश्रुतविच्छित्तौ च जाताया, भविष्यद् भव्यलोकोपकराय श्रुतभक्तये च श्रीसड घाग्रहाद् मृतावशिष्टतदाकालीन सर्वसाधून बलभ्यामाकार्य तन्मुखाद् विच्छिनावशिष्टान् न्यूनाधिकान् नटितानुन टितानागमालापकाननुक्रमेण स्वमत्या सकलय्य पुस्तकारुढ कृता । ततो मूलतो गणधरभापितानामपि तत्सकलनानन्तर सर्वेपामपि आगमाना कर्ता थीदेवद्धिगणिक्षमाश्रमण एव जात । (समाचारीशतक)
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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