SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 423
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी ४०१ आज से कई वर्ष पहले इस अनिवार्यता को समझा और अपने चिंतन को व्यावहारिक रूप प्रदान करते हुए सपूर्ण जैन समाज के सामने पचसूत्री योजना प्रस्तुत की, वह इस प्रकार है १ मण्डनात्मक नीति वरती जाए, अपनी मान्यता का प्रतिपादन किया जाए। दूसरो पर मौखिक या लिखित आक्षेप नही किए जाए । २ दूसरो के विचारो के प्रति सहिष्णुता रखी जाए । ३ दूसरे सम्प्रदाय और उसके अनुयायियों के प्रति घृणा, तिरस्कार की भावना का प्रचार न किया जाए। ४ कोई सप्रदाय परिवर्तन करे तो उसके साथ मामाजिक बहिष्कार आदि अवाछनीय व्यवहार न किया जाय । ५ धर्म के मौलिक तथ्य अहिंसा, सत्य, अचोर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह को जीवनव्यापी बनाने का सामूहिक प्रयत्न किया जाए । जैन एकता की दिशा मे पचमुद्री योजना की महत्त्वपूर्ण देन उनकी सम्प्रदायमुक्त भूमिका का ही परिणाम है । जनकल्याण हेतु आचार्य श्री तुलमी के निर्देशानुसार वी० नि० २४७५ (वि० २००५ ) मे अणुव्रत अभियान प्रारम्भ हुआ । अणुव्रत नैतिक आचार सहिता है । वह धर्म एव अध्यात्म का आधुनिक रूप प्रस्तुतीकरण है। समाज की धमनियों में नई चेतना का सचार करने हेतु वस्त है । स्वस्थ परम्परा का उज्जीवक है । जीवन-शुद्धि, भारतीय संस्कृति, राष्ट्रीय चारित्य व मानवीय मूल्यों का उत्प्रेरक है। जाति, लिंग, वर्ण, सम्प्रदाय को सीमा दूर मानवता के उन्नयन की दिशा में यह आन्दोलन कार्य कर रहा है । "सयम खलु जीवन" सयम ही जीवन है। यह इस अभियान का समुद्घोप है। प्रत्येक मनुष्य को इसे अपने जीवन में ढालने की पूरी कोशिश करनी चाहिए । अणुव्रत की आवाज आज झोपडी से लेकर महलो तक पहुच गयी है । लक्षाधिक व्यक्तियो ने अणुव्रत दर्शन का गभीरता से अध्ययन किया है और सहस्रो व्यक्तियो ने अपने जीवन में भी उतारा है । स्वर्गीय राष्ट्रपति डा० राजेन्द्र प्रसाद, डा० जाकिर हुसेन, प्रधानमत्री जवाहरलाल नेहरू तथा सर्वोदय नेता जयप्रकाश नारायण, आचार्य विनोवा भावे एव डा० सपूर्णानन्द आदि शीर्षस्थ नेताओ ने इस अभियान की भूरि-भूरि प्रशंसा की है । सदियो से उपेक्षित नारी जागरण हेतु भी आचार्य श्री तुलसी ने गम्भीर चिन्तन किया । जीवन-अभ्युत्थान के लिए नये मोड की सुव्यवस्थित योजना प्रस्तुत कर उन्हें जीने की कला सिखायी। 'सादा जीवन उच्च विचार' का प्रशिक्षण देकर अर्थहीन मूल्यो, अन्धविश्वासो, स्ढ परम्पराओ से भी नारी समाज को मुक्त किया
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy