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________________ २० जैन धर्म के प्रभावक आचार्य न्याय युग की प्रतिष्ठा न्याय युग की प्रतिष्ठा में मल्लवादी, पान केशरी, विद्यानन्द, अभयदेव, माणिक्यनन्दी, वादिराज, प्रभाचन्द्र वादिदेव, रत्नप्रभ, मल्लिपेन आदि आचार्यों का नाम विशेष रूप में उल्लेखनीय है । इन आचार्यों ने द्वादशार नयचक्र,निलक्षण कदर्यन, प्रमाण-परीक्षा, वाद महार्णव, परीक्षामुप, न्यायविनिश्चय विवरण, न्याय कुमुदचन्द्र, प्रमेय कमल मार्तण्ड, प्रमाण नयतत्त्वालोक, प्रमाण मीमामा, रत्नाकरावतारिका और स्याद्वादमञ्जरी जैसे अन्य निर्माण कर न्याय व्यवस्था को पूर्ण उत्कर्ष पर चढा दिया था। जैन ग्रन्थो मे नव्यन्यायशैली के प्रतिष्ठापक उपाध्याय यशोविजय जी थे। योग और ध्यान के सदर्भ मे योग और ध्यान के विषय में भी जनाचार्यों ने मौलिक दृष्टिया प्रस्तुत की। आचार्य हरिभद्र, आचार्य शुभचन्द्र और कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र योग के महान् प्रतिष्ठापक थे । आचार्य शुभचन्द्र का 'ज्ञानार्णव' और आचार्य हेमचन्द्र का 'योगशास्त्र' योग विषय की प्रसिद्ध कृतिया हैं। आचार्य हरिभद्र के 'योग विन्दु'. 'योगदृष्टि समुच्चय', 'योगविशिका', 'योगशतक' और 'पोडशक' इन पाचो ग्रन्यो मे पातजल योगदर्शन के साथ समन्वय तथा जैन दर्शन से सम्बन्धित नवीन यौगिक दृष्टियो की अवतारणा भी है। मिता, तारा, बला, दीपा आदि आठ दृष्टियो का प्रतिपादन जैनाचार्यों के मौलिक चिन्तन का परिणाम है। प्राकृत व्याख्या ग्रन्थो का निर्माण भगवान महावीर की वाणी गणधरो द्वारा प्राकृत भाषा मे निवद्ध हुई, यह आगम साहित्य के रूप में जैन ममाज के पास उपलब्ध थी। आगम ग्रन्थो की शैली अत्यन्त सक्षिप्त एव गूढ थी। उसमे सुगमता मे प्रवेश पाने के लिए जैनाचार्यों ने प्राकृत व्याख्या साहित्य का निर्माण किया। नियुक्ति रचना के साहित्यकार आचार्य भद्रवाह, भाष्य साहित्य के रचनाकार आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, चणि साहित्य के रचनाकार आचार्य जिनदास महत्तर इस युग के महान आगम व्याख्याकार आचार्य थे । चूणियाँ सस्कृत-मिश्रित प्राकृत मे हैं। नियुक्ति, भाष्य और चूणि साहित्य के रूप मे रचित विशाल व्याख्या साहित्य जैन इतिहास का गौरवमय पृष्ठ है।
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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