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________________ ज्ञान- तिमिरनाशक भाचार्य अमोलक ऋषि ३७७ उर्दू भाषा मे भी प्रकाशित है । अमोलक ऋषि जी का स्थानकवासी समाज पर अच्छा प्रभाव था । धर्म-प्रचार की दृष्टि ने उन्होने मालव आदि क्षेत्रों मे विशेष रूप से विहरण किया । वृद्धावस्था मे भी उन्होंने पंजाब की यात्रा की। उनका वी० नि० २४६२ (वि० स० १६६२) चातुर्मात दिल्ली मे था । कोटा, बूदी, रतलाम आदि क्षेत्रों में विहरण कर वो ० नि० २४६३ (वि० सं० १९९३ ) का चातुर्मान उन्होंने यानदेश मे किया । इस चातुर्मास मे उनके कर्ण वेदना हुई। उपचार करने पर भी वेदना उपशान्त नही हुई । जीवन के अत समय में भादपद कृष्णा चतुर्दशी के दिन उन्होंने अनशन किया। परन ममता भाव में वे स्वर्गगामी बने ।
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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