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________________ ३१२ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य गन्धो से प्राप्त सामगी जोड़कर उन्ह रोचक और मन्द बुद्धिवालों के लिए भी सुपाच्य बना डाला है । इन कथानको की सरसता ने पाश्चात्य विद्वानों का ध्यान भी अपनी ओर योना है। अठारह भावाजी के विद्वान् डा० हर्मन जे गोवी ने उन कथाओं का स्वतन रूप से सगह किया। मुनि जिनविजय जी द्वारा भी प्राकृत कथा - सग्रह के नाम से उनका प्रकाशन हुआ । ० जे० मेयर ने अगेजी भाषा में इनका अनुवाद स० १९०६ मे किया था । ल्यूमेन भी इन कथाओ पर अवश्य मुग्ध रहे हैं तभी तो इन्होंने नेमिचन्द्र सूरि द्वारा कथा प्रसंग के साथ प्रयुक्त पूर्व प्रबन्ध मे पूर्व शब्द को निस्सकोच माव से दृष्टिवाद के अश का सूचक माना है । I यह टीका सक्षिप्त मूल पाठ का स्पर्श करती हुई अर्थ- गौरव से परिपूर्ण है । यह प्राकृन कथाओ की प्रचुरता के कारण हरिभद्र की शैली का अनुमरण करती हुई प्रतीत होती है । वैराग्यरम से परिप्लावित ब्रह्मदत्त और अगड़दत्त जंमी कथाओ के साहचर्य से इस सुविशाल टीका में प्राणवत्ता आ गयी है और विभिन्न ग्रन्थो के व गाथाओं के उद्धरण तथा सोदाहरण नाना विषयों की विवेचना के कारण इसकी मावजनिक उपयोगिता सिद्ध हुई है । 'महावीर चरित्र' नामक प्राकृत ग्रन्थ की रचना मी आचार्य नेमिचन्द्र ने अनहिल पाटण नगर के दोहड श्रेष्ठी की वमति मे को थी। इस ग्रन्थ का समापन काल वी० नि० १६११ ( वि० ११४१) है | आचार्य नेमिचन्द्र सूरि ने उत्तराध्ययन के प्रथमाशो की जितनी विस्तृत टीका की है, उत्तराशो की टीका में उतना विस्तार नही है । अन्तिम १२, १३ अध्ययनो की टीका अधिक सक्षिप्त होती गयी है। उनमे न कोई विशेष कथाए हैं और न कोई अन्य उद्धरण ही है । शान्त्याचार्य की उत्तराध्ययन टीका की अपेक्षा नेमिचन्द्र सूरि की टीकागत कथाओ की विस्तार पद्धति पाठक के लिए नितात नवीन-सी प्रतीत होती है । टीका - प्रशस्ति मे प्राप्त उल्लेखानुसार आचार्य नेमिचन्द्र वी० नी० १६वी१७वी सदी (वि० १२वी) के विद्वान् माने गए है ।
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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