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________________ ३७. नितात नवीन आचार्य नेमिचन्द्र जैन विद्या के मनीपी टीकाकार नेमिचन्द्र का पूर्व नाम देवेन्द्र गणि था। उन्होंने वि० ११२६ मे उत्तराध्ययन पर 'सुपवाघा' नामक टीका लिखी है। इसी टीका को प्रशस्ति में इनका सक्षिप्त जीवन-परिचय प्राप्त होता है । उनके गुरु का नाम आनदेव था । आम्रदेव वृहद् गच्छीय उद्योतन सूरि के शिष्य थे। मुनिचन्द्र इनके गुरुनाता थे। नेमिचन्द्र सूरि का सस्कृत और प्राकृत दोनो भापाओ पर माधिपत्य था। प्राकृत में इनका 'महावीर चरित्न' पद्यवद्ध ग्रथ रत्न है। इसकी परिसमाप्ति वि० ११४१ मे अनहिल पाटन नगर के दोहड श्रेष्ठी की वमति में हुई थी। 'सुनवोधा' टीका का निर्माण भी इमी श्रेणी के यहा गुरुभ्राता मुनिचन्द्र की प्रेरणा से शान्त्याचार्य की 'शिष्यहिता' टीका के आधार पर हुआ था। इस टीकारचना के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए स्वय नेमिचन्द्र सूरि लिखते है . आत्मस्मृतये वक्ष्ये जडगति सक्षेप:चिहितायं च । एकैकार्यनिवद्धावृत्ति शुभस्य सुपवोधाय ।।२।। वहाद् वृद्धकृताद्, गम्मोराद् विवरणात् समुद्धृत्य अध्ययनानामुत्तरपूर्वाणामेकपाठगताम् ।।३।। अर्थान्तराणि पाठान्तराणि सूने च वृद्धटीकात बोद्धव्यानि यतोऽय, प्रारम्भी गमनिकामात्रम् ॥४॥ -~-मन्दमति और सक्षेप रुचिप्रधान पाठको के लिए मैंने अनेकार्य गम्भीर विवरण से पाठान्तरोऔर अर्यान्तरो से दूर रहकर इस टीका की रचना की है। अर्यान्तरो और पाठान्तरो के जाल से मुक्त होने के कारण इस टीका की 'सुखवोधा' सज्ञा सार्थक भी है। टीका की इस विशेपता ने 'सरपेन्टियर' को बहुत अधिक प्रभावित किया था। उन्होंने पाठ-निर्धारण में इसी टीका को प्रमुखता दी और टिप्पण भी लिखे। ___ इस टीका की एक और विशेपता प्राकृत कथानको का सविस्तार वर्णन है। शान्त्याचार्य ने अपनी 'शिप्यहिता' टीका में जिन कथानको का एक दो पक्ति मे सकेतमान दिया है नेमिचन्द्र सूरि ने उन कथानको के साथ अन्य
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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