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________________ भाचार्यों के काल का सक्षिप्त सिंहावलोकन १३ दिगम्बर परम्परा के अनुमार अग मागम के ज्ञाता एव अण्टाग महानिमित्त शास्त्र के विद्वान् आचार्य धरसेन थे। उनके पास विणाल पूर्वो पा आशिफ ज्ञान सुरक्षित था । उन्होने पूर्वाश को सुरक्षित रखने के लिए मेधावी शिप्य पुष्पदन्त एव भूतबलि को वाचना प्रदान की। आगम विच्छेद-क्रम भगवान महावीर की वाणी का प्रत्यक्ष श्रवण कर विपदी के माधार पर गणघरो ने आगम-वाचना का कार्य किया । वीर निर्वाण के बाद उस आगम सम्पदा का उत्तरोत्तर हाम हुआ है। दिगम्बर परम्परा के अनुमार वीर निर्वाण की गातवी शताब्दी तक अगागम काज्ञान प्राप्त रहा। एकादणागी के अन्तिम साता आचार्य ध्रुबरोन थे। मुगद्र, यशोभद्र, यशोवाह, लोहार्य-ये चार आचार्य एका आचाराग सूत्र के ज्ञाता थे। आचार्य नोहार्य के बाद आचागग सूत्र का कोई माता नहीं हुआ। लोहायं का समय वी०नि०६८ (वि० २१:) तक का है। अत दिगम्बर मत से वी० नि०६३ (वि० ०१) तक आगम की उपलब्धि मानी जाती है। उनके बाद आगम का नर्वधा विच्छेद हो गया। श्वेताम्बर परम्परा मर्वथा आगम-विच्छेद की परम्परा को स्वीकार नहीं करती। इस परम्परा के अनुमार आगम वाचनाकार आचार्यों के सत्प्रयत्नो से आगम-सकलना का महत्त्वपूर्ण कार्य हुआ और इससे आगमो की सुरक्षा होती रही है । आज भी जैन समाज के पाम एकादशागी आगम निधि के रूप मे भगवान महावीर की वाणी का प्रमाद उपलब्ध है। दुष्काल की घटियो मे आगम-निधि क्षत-विक्षत हुई, पर उसका पूर्ण लोप नहीं हुआ था। आगमपरक माहिल्य आगम युग में जैनाचार्यों द्वारा महत्त्वपूर्ण आगमपरक साहित्य का निर्माण भी हुआ। द्वादशागी की देन याचार्य मुधर्मा की है जिमका उल्लेन पहले ही कर दिया गया है । दशवकानिक के निर्वहक आचार्य शय्यम्गव, छेद सूत्रो के रचयिता आचार्य भद्रवाह, ओर प्रज्ञापना के रचयिता श्यामाचार्य थे । दशवकालिक, छेद मून एव प्रनापना को अग वाह्य मागम माना गया है। तत्त्वार्थ सूत्र के रचयिता आचार्य उमाम्वाति, पत्रण्डागम के रचयिता आचार्य पुष्पदन्त, भूतवलि, कपाय प्राभूत के रचयिता आचार्य गुणधर, समयसार, प्रवचनसार, नियमसार, पचास्तिकाय, अष्ट प्राभूत माहित्य आदि ग्रन्थो के रचयिता आचार्य कुन्दकुन्द इम युग के महान साहित्यकार थे।
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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