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________________ ३०. सिद्धान्त-चक्रवर्ती आचार्य नेमिचन्द्र निज्ञान-पानी नमिन्द्रसम्बर मारा थे। वे गगवशीय राजमाल के प्रधान नवी वान राम के गुरु थे। नागय मनापति था। उसके हाथ में तनगार और य म नाहिमा पापन गरिता की। उगने और ममरागप में परे होकर गुर्गम, नापिता ना भारी उगाधियों को प्राप्त पिया, दूसरी ओर यह धजनता भी पायामम्पूर्ण दक्षिण में उमा अध्यात्म की नहर प्रसारित र नामन कास्ना आया था। चामुहगय की इस धानिक प्रवृति में प्रेरनागा मिचन्द्र में। __नानुहराय ने स्वप्न म नीट न योनी की प्रतिमा ती थी। यह प्रभाव नी प्राचार्य नेगिन्द्र काही था। ___ आचार्य नेमिचन्द्र के पीछे मिसान्त-चपवनी को उपाधि उनके अगाध मैद्धान्तिक ज्ञान की नाक है। चमवर्ती चक्र द्वाग पहपी पर पिजय प्राप्त करता है। इसी तरह विगदमनि फेना में महानिक मान पर उनपी विजय हुई। धरला, जयधवला का जापार कर गोमद्रमार, निलोफसार, नविधमार-क्षपणमार आदि कई गन्थ उन्होंने लिो। इनमे प्राकृत और शौरसेनी तामम्मिश्रण है। __ गोमट्टमार उनकी यस प्रमिद कृति है। इसकी रचना उन्होंने श्रवणबलगोल में बैठकर की थी। चामुदराय ने उस पर कर्णाटकीय टीका तिखी। गोमट्टमार के अतिरिणत लब्धिमार जोर द्रव्यमग्रह मी उनके प्रामाणिक ग्रन्थ माने गए है। मिद्धान्त-चक्रवर्ती नेमिचन्द्र वीर निर्वाण की १६वी शताब्दी (वि० ११वी) के आचार्य माने गए है।
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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