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________________ २९४ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य की प्रशस्ति मे आचार्य प्रभाचन्द्र ने आचार्य माणिक्यनन्दि का गुरुरूप मे स्मरण किया है। श्रवणबेलगोल के शिलालेख न० ४०-५५ मे आचार्य प्रभाचन्द्र के पद्मनन्दि सिद्धात और चतुर्मुखदेव-ये दो गुरु और माने गए है। माणिक्यनन्दि उनके न्याय-विद्या गुरु थे। इतिहासकारो का अनुमान है-इन दोनो का साक्षात् गुरु-शिष्य-सम्बन्ध था। ___ कई इतिहासकारो का अभिमत है-आचार्य प्रभाचन्द्र ने तीन या चार ग्रन्थो का ही निर्माण किया है। ____ आचार्य वादिदेव के स्याद्वाद-रत्नाकर ग्रन्थ मे प्रमेयकमलमार्तण्ड का सर्वप्रथम उल्लेख प्राप्त होता है पर आचार्य वादिराज के ग्रन्थो मे उल्लिखित विद्यानन्द आदि जैन विद्वानो के साथ प्रभाचन्द्र का नाम नहीं है। इस आधार पर न्यायकुमुदचन्द्र प्रस्तावना मे प्रस्तुत प्रभाचन्द्र की अन्तिम अवधि ई० ११५० के लगभग स्वीकृत हुई है।
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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