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________________ २६२ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य भापा और शैली की दृष्टि से भी यह अत्युत्तम टीका मानी गयी है। उत्तराध्ययन सूत्र पर अब तक जितनी टीकाओ के नाम उपलब्ध है उनमें यह टीका शीर्षस्थानीय है । इसे वादी रूपी नागेन्द्रो के लिए नागदमनी के समान माना है। शान्त्याचार्य का पादार्पण अतिम समय मे उपासक यश के पुत्र 'सोढ' के साय गिरनार पर्वत पर हुआ। उनका वही पच्चीस दिवसीय अनशन के साथ वी०नि० १५६६ (वि० १०६६) ज्येष्ठ शुक्ला नवमी मगलवार को स्वर्गवास हो गया था। आधार-स्थल १ अहिल्लपुरे श्रीमद्भीमभूपालससदि। __ शान्तिसूरि कवीन्द्रोऽभूद् वादिचक्रोति विश्रुत ॥२१॥ (प्रभा० चरित, पताक १३३) २ विश्वदर्शनवादीन्द्रान् स राज्ञ पर्पदि स्थित । जिग्ये चतुरशीति च स्वस्वाम्युपगमस्थितान् ॥४७॥ (प्रभा० चरित, पत्राक १३४) ३ वादिवेतालविरुद तदपा प्रददे नृप ॥५६॥ (प्रभा० चरित, पनाक १३४) ४ अथ प्रमाणशास्त्राणि शिष्यान् द्वात्रिंशत तदा । अध्यापयन्ति श्रीशान्तिसूरयश्चैत्यसस्थिता ॥७॥ (प्रभा० चरित, पन्नाक १३५) ५ कथा च धनपालस्य तैरशोध्यत निस्तुपम् ॥५६॥ (प्रभा० चरित, पताक १३४) ६ उत्तराध्ययननथटीका श्रीशान्तिसूरिभि । विदघे वादिनागेन्द्रसन्नागदमनीसमा ॥६॥ (प्रभा० चरित, पनाक १३५) ७ श्री विक्रमवत्सरतो वर्षसहस्र गते सषण्णवती (१०६६) । शुचिसितिनवमीकुजकृत्तिकासु शान्तिप्रभोरभूदस्तम् ॥१३०॥ (प्रभा० चरित, पत्नाक १३७)
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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