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________________ २७८ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य वे वहा से विदा हुए। धारा नगरी में उनका राजकीय सम्मान के साथ प्रवेश हुना। राना मोज ने स्वय सामने आकर उनका गौरव बढाया। प्राचार्य की काव्य-रचना से राजा भोज पहले ही प्रभावित थे। नव उनकी शास्त्रार्थ कुशलता ने धारा नगरी के अन्य विद्वानो पर भी अपूर्व शाप अक्ति कर दी। एक वार राजा भोज ने भिन्न-भिन्न धर्म सम्प्रदायों के धर्म गुरुओ को कारागृह मे बन्द कर उन्हे एकमत हो जाने के लिए विवश किया था। इस प्रसग पर धार्मिला के सामने भारी धर्म-सकट उपस्थित हो गया था। प्राचार्य ने एक युक्ति सोची। राजसभा मे पहुचकर वे वोले, "मैने आपत्ती धारा नगरी का निरीक्षण किया है। यह नगरी यथार्थ मे ही दर्शनीय है पर इस विषय में मेरा आपसे निवेदन है कि यहा की सब दुकाने एक हो जाने पर ग्राहको को अधिक सुविधा होगी। उन्हे वस्तुओ का क्रय करने के लिए भिन्न-भिन्न स्थानों पर पहुनने का कप्ट नहीं करना पडेगा।" राजा भोज मुस्करा कर बोले, "सतश्रेष्ठ | सब दुकानो के एक हो जाने की वात कैमे सभव है? एक ही स्थान पर अधिक भीड हो जाने से लोगो के लिए प्रयविक्रय के कार्य मे अधिक बाधा उपस्थित होगी।" मूराचार्य ने कहा, "राजन् । भिन्न-भिन्न अभिमत रखने वाले धर्म सम्प्रदायों का एक हो जाना मर्वया अमभन है । दयार्थी जैन-दर्शन, रसार्यो कोल-दर्शन, व्याहारप्रधान वैदिक-दर्शन एव मुक्ति का कामी निरजन सम्प्रदाय का मतैक्य को ही सकता है?" ___ युस्तिपुरस्मर कही हुई माचार्य की बात राजा भोज के समय में आ गयी। उन्होंने कारागृह में वन्द धर्मगुरुओं को मुक्त कर दिया। ____ विद्वान् राजा भोज के धर्मनिष्ठ, चिन्तनशील व्यक्तित्व के साथ यह प्रगग जम्वाभाविक-सा प्रतीत होता है। एक बार गजा भोज द्वारा रचित व्याकरण में भी अगद्वि का निर्दा कर मगचार्य ने वहा की विद्वत् नना का उपहान किया था। मप्रपत्ति मे गगाना। अपित हुए। इन कोपका भयकर परिणाम मगनायंका मोगना पना THE धनपाल ने बीच ने जार उन्हें बना लिया और प्रच्छन्न गमे गागा दाम विदा कर दिया था। प्राचार्य का युग निधिनाचार का युग था। जाचार्य गावान | फरने नोमानाय भी बाग नगरी और पाटण प्रश कर गम - वाहन उपयागजिया था।' गायनानगर ये। उन्होने दिनाय और नेमिनायोnirf THE चमोरियादियान नामलाप का निमाणirrit
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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